पर्यावरणमंदसौरमध्यप्रदेश

जंगल बचाने की जुनूनी जिद,जल, जंगल और जमीन बचाने में कई बार लगाई जान की बाजी

 

मल्हारगढ़ .(सूरजमल राठौर) मानव जीवन के अस्तित्व के लिए जमीन पर सबसे ज्यादा जरूरी ज्यादा से ज्यादा जंगल का होना होता है.धरती पर सबसे ज्यादा अनमोल , सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हरे – भरे पेड़ पौधे होते है, अगर जंगल नही होता, पेड़ पौधे नही होते तो आसमान में बादल भी नही होते और बरसात भी नहीं होती. जंगल नही होता तो शायद मानव जीवन भी नही होता क्योंकि जंगल पर ही जलवायु भी निर्भर करती है. इसीलिए जल,जंगल और जमीन के होने के कारण से ही जीवन सहज – सरल तरीके से जिया जा सकता है .जंगल और जीवन दोनो को एक दुसरे का प्रयाय कहा जाता है.जंगल में जगह जगह बड़े पैमाने पर उगते विभिन्न प्रजातियों के पेड़ पौधे न केवल ठंडी छांव देते हैं, जड़ी-बूटी देते हैं, मन को महकाने वाले रंग बिरंगे खुशबूदार फूल देते हैं, रसीले फल देते हैं बल्कि घने जंगलों की वजह से ही धरती पर बरसात भी होती है, इतना ही नहीं मानव जीवन के लिए सबसे ज्यादा जरूरी वस्तु, जिसके बिना मानव दो मिनिट भी जिंदा नही रह सकता, ऐसी प्राण वायु आक्सीजन भी पेड़ पौधों से ही मिलती हैं . इतना ही नहीं मानव द्वारा छोड़े जानी वाली कार्बन डाई आक्साइड गैस को भी पेड़ पौधे ही सोखकर आक्सीजन में बदलते हैं.इसलिए मानव जीवन के अस्तित्व के लिए जंगल को ही सबसे ज्यादा जरूरी जाना -माना जाता है और यह जरूरी है भी, लेकीन जमीनी हकीकत यह भी है कि विगत सौ साल में मानव जीवन के लिए सबसे ज्यादा जरूरी जंगल ही जोरशोर से समाप्त किए जा रहे हैं. कभी ईंधन के नाम पर तो कभी नए गांव बसाने ,गांव की नई आबादी बसाने, नई दुकानों के नाम पर,उद्योग खोलने के नाम पर, नए कमर्शियल वेयर हाउस खोलने के नाम पर, पेट्रोल पंप खोलने के नाम पर, नए रास्तों के निर्माण के नाम पर, सड़को के जाल बिछाने के नाम पर,होटल निर्माण के नाम पर, कृषि भूमि बढ़ाने के नाम पर,विभिन्न क्षेत्रों -विभागो के दफ्तर बनाने के नाम पर या बड़े – बड़े विशालकाय व्यवसायिक कांप्लेक्स या ऐसे विकास कार्यों के नाम पर जिसमे पेड़ -पौधों को उखाड़ कर जंगल की जमीन लगातार कम होने से जंगल बचाने की जरूरत को देखते हुए ही 1947 में देश के स्वतंत्र होने के बाद सरकार जंगल बचाने के लिए गंभीर हुई और सरकार ने सक्रियता के साथ सबसे पहले जो जरूरी काबिले गौर कार्य किया है, वो है “वन विभाग” का गठन किया जाना।

दशकों पहले वन विभाग के अस्तित्व में आने के बाद न केवल वन कटने की रफ्तार में कमी आई है, बल्कि जंगल रहेंगे तो ही मानव जीवन रह सकेगा, यह जरूरी जानकारी भी आमजनों में ज्यादा से ज्यादा प्रसारित हो पाई है, आमजन भी इस हकीकत से रूबरू हुए हैं तो इसके पीछे है सरकार द्धारा संचालित किए जाने वाले वन विभाग के कई कई कर्तव्यनिष्ट, ईमानदार व जांबाज शासकीय अधिकारियों – कर्मचारियों की कड़ी मेहनत और जल, जंगल और जमीन बचाने की जुनूनी जिद, जिसके चलते जंगल बचाने के लिए ऐसे कर्मचारी अपनी जान की बाजी लगाने से भी पीछे नहीं हटते और किसी भी कीमत पर पेड़ पौधों पर कोई आंच नहीं आने देते, इतना ही नहीं वन विभाग के कुछ अधिकारी – कर्मचारी तो पेड़ पौधों का इतना ज्यादा ख्याल रखते हैं कि उनके क्षेत्र में जंगल कम होने की कोई आशंका नहीं होती बल्कि राहत भरी बात यह होती है कि ऐसे अधिकारी – कर्मचारियों के इलाकों में वन क्षेत्र का रकबा और बढ़ जाता है।

ऐसे ही जंगल बचाने की जुनूनी जिद में कई बार अपनी जान की बाजी लगाने वाले वन विभाग के अधिकारी श्री मांगीलाल मालवीय भी है जो समीपी नगर जीरन में रहते हैं और इसी सप्ताह चिताखेड़ा में वन परिक्षेत्र सहायक पद से सेवा निवृत हुए हैं. बचपन से ही रंग बिरंगी प्रकृति के जादू से प्रसन्न होने वाले श्री मांगीलाल जी मालवीय को मानव हितेषी पेड़ पौधों को लगाने, उनकी देखभाल करने और उन्हें बचाने का शौक रहा है और यह संस्कार उन्हें उनके परिवार वालो से मिला है।

गौरतलब है कि नीमच जिले के जीरन नगर के इस मालवीय परिवार के कई सदस्य वन विभाग में सेवारत रहे हैं. यही कारण है कि श्री मांगीलाल जी मालवीय का भी न केवल बचपन से ही मनोरम वन में रहने का ख्वाब रहा है, पेड़ – पौधों को ‘ पालक’ की तरह से पालने का शौक रहा है, संस्कार रहा है,बल्कि उस ख्वाब को हकीकत में बदलते हुए मांगीलाल मालवीय ने अपने शौक को ही आजीविका बनाने का फैसला करते हुए वन विभाग में शासकीय सर्विस ज्वाइन कर ली।

शासकीय सेवा में रहते हुए मांगीलाल जी कई बार इसी जंगल को बचाने के चक्कर में मौत के आगोश मे जाते जाते भी बचे हैं, एक बार जब जंगल में आग लग गई थी तो उसे बुझाने में मांगीलाल मालवीय के हाथ भी जल गए थे, जिसके निशान आज भी उनके हाथों पर देखे जा सकते हैं. कई बार चंदन, सागौन, शीशम जैसी कीमती पेड़ पौधों को बचाने के लिए भी मांगीलाल मालवीय ने ऐसे चोर -डाकुओं से अपनी जान की बाजी लगाते हुए जंगल की कीमती वस्तुओ की रक्षा की है, तो कई बार जंगली जानवरों के हमले भी हुए लेकिन भगवान की कृपा से मांगीलाल जी सुरक्षित रहें है।

श्री मांगीलाल मालवीय के परिवार से ही सर्व श्री. भी वन विभाग में सेवारत रह चुके हैं, ऐसे नेक, ईमानदार, अनुशासन के साथ जीवन बिताने वाले जांबाज प्राकृति प्रेमी श्री मालवीय के बारे में कहा जा सकता है कि -” जमीन से कहां आसमान देखता है/पंख खोल जमाना उड़ान देखता है.

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