अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए बदलिए खान पान की गलत आदतें
((((((((((((((((((((())))))))))))))))))))))
अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए बदलिए खान पान की गलत आदतें
हमारे खाने-पीने की आदतों का सीधा सम्बंध होता है हमारी जीवन शैली से। भोजन की गलत आदतें हमारे शरीर तथा मन दोनों पर ही अपना कुप्रभाव डालती हैं। समझदारी इसी में होगी कि ज्यादा हानि होने से पहले ही उन्हें सुधारा जाए। सुधार लाने के लिए मात्र आत्मसंयम तथा विवेक की जरूरत है। आइए देखें, भोजन की वे कौन-कौन सी गलत आदतें हैं जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हैं-
ठूस ठूसकर खाना-
भोजन की यह सबसे ज्यादा हानिकारक गलत आदत है। अनुमानत: चालीस से पचास की आयु के भारतीय सामान्यतया मोटे होते हैं। उनका मोटापा एक बोझ बन जाता है। मोटापे से ब्लडप्रेशर, आर्टिरियो स्केलोरोसिस (वसा के जमा हो जाने से खून की नलियों में प्रवाह के दौरान रुकावट पैदा हो जाती है), फालिज, मधुमेह या गठिया जैसे रोग होने का अंदेशा रहता है। आयु बढ़ने के साथ शरीर को भोजन की अपेक्षाकृत कम मात्रा चाहिए। एक माह से छह माह तक के शिशुओं को प्रति किलोग्राम शारीरिक वजन के लिए 118 कैलोरी और छह माह से एक वर्ष तक की आयु के बच्चों को प्रति किलोग्राम शारीरिक वजन के लिए 1180 कैलोरी चाहिए। लड़कियों को प्रतिदिन थोड़ी अधिक कैलोरी चाहिए। सामान्य रूप से गृहकार्य करने वाली मझोले कद वाली महिला को प्रतिदिन 2200 (एक दिन में) कैलोरी चाहिए। वैसे काम तथा आयु के साथ कैलोरी की मात्रा घट-बढ़ सकती है। यदि आप मोटे होते जा रहे हैं तो इस गलत आदत पर रोक ऐसे लगाएं-
जरूरत से ज्यादा न खाएं। वजन बढ़ाने वाले भोजन जैसे घी, मक्खन, सूखे मेवे तथा मिठाइयों से हर संभव परहेज करें। मलाई रहित दूध का सेवन करें। तली चीजें न खाएं अपितु सब्जियां आदि भाप द्वारा पकाकर या हल्का भूनकर ही खाएं। मिठाइयों की जगह सस्ते मौसमी फल खाएं।
पौष्टिकता की दृष्टि से असंतुलित भोजन करना-
परिवार की अधिक सांस्कृतिक तथा धार्मिक पृष्ठभूमि और उसके बड़े आकार का कुपोषण और भोजन की गलत आदतों से सीधा संबंध हो सकता है। कुछ परिवारों में इन उपर्युक्त कारणों से एक खास प्रकार का ही भोजन खाया जाता है। जो वास्तव में असंतुलित और अपौष्टिक होता है। जैसे एक परिवार में मात्र आलू का प्रयोग सब्जी के रूप में होता है। इसके अलावा उस परिवार में दूसरी सब्जी बनती ही नहीं। इस तरह की हठधर्मी या ‘फूड फेडिज्म कुपोषण का कारण बन सकता है। आर्थिक स्थिति ठीक न रहने पर तो ‘दाल रोटी के अलावा कुछ और सम्भव नहीं होता तथा इस तरह अन्य पौष्टिक तत्त्वों से वंचित रहना पड़ता है। लेकिन मेरी दृष्टि में इन सब बातों के मूल में है हमारी अज्ञानता। आर्थिक अभाव होने पर भी जानकारी हो तो हम पौष्टिक भोजन कर सकते हैं।
कैसे–
भोजन के विषय में हठधर्मीता त्याग कर भोजन में विविधता लाएं। डिब्बाबंद या पॉलिश किए हुए पदार्थों (चावल, चीनी आदि) की जगह स्वाभाविक भोजन ही करें। हर भोजन में सलाद और चटनी का आवश्यक रूप में समावेश करें, इससे विभिन्न विटामिन और खनिज अपने प्राकृतिक लाभकारी रूप में मिलेंगे। तलने और भूनने से वे नष्ट हो जाते हैं। सादी दाल की जगह ‘सगपैता (साग डालकर) बनाएं, यह अधिक पौष्टिक होगा। स्टार्च बहुल भोजन जैसे बड़ा, आलू, शकरकंद आदि कम लें।
अधिक चिकनाई युक्त भोजन-
एक कामकाजी वयस्क के लिए प्रतिदिन 30 ग्राम चिकनाई पर्याप्त है। अतिरिक्त चिकनाई शरीर के एडिपोज तंतुओं में एकत्र हो जाती है तथा रक्त में मिली यही चर्बी धमनियों की दीवारों में चिपककर उन्हें मोटा तथा कड़ा बना देती हैं परिणाम स्वरूप रक्त संचार में बाधा पैदा होती है और शरीर को ऑक्सीजन की भरपूर मात्रा नहीं मिल पाती। अतिरिक्त चर्बी एकत्रित होते रहने से धमनियों में उसके थक्के जम जाते हैं और यही कारण बन जाता है, हार्ट अटैक, पक्षाघात या जोड़ों के रोगों का। इन्हीं कुप्रभावों से सांस लेने में दिक्कत होती है और शरीर और बेडौल होने लगता है।
समाधान–
संतृप्त चिकनाई (जमने वाले तेल, घी) हरगिज न खाएं। जानवरों की चर्बी, घी, मक्खन, मलाई वाला दूध तथा पनीर इसी श्रेणी में आते हैं। ‘सपरेटा यानी मलाई रहित दूध का पनीर खाएं। जहां तक संभव हो तली हुई चीजें या पकवान इत्यादि न खाएं।
रेशेदार भोजन का बहुत कम सेवन-
रेशे या ‘फाइबर्स पौधों का वह भाग होता है जो पचता नहीं है, अपितु मलाशय में पानी की मात्रा को कायम कर उसे फुलाता है तथा इसी कारण मल सरलता से बाहर निकल जाता है। अपर्याप्त रेशेदार भोजन या इसके नितांत अभाव में बड़ी आंत या ‘कोलन में संक्रमण हो सकता है। हार्निया या मलाशय का कैंसर भी होने का डर रहता है। रेशों के अभाव में कब्ज रहता है और कब्ज होने से उपर्युक्त गंभीर रोग भी हो सकते हैं। इन रोगों के परिणाम स्वरूप रक्त बहाव हो सकता है,जिससे एनीमिया (रक्ताल्पता) की परेशानी भी हो सकती है।
तो क्या करें-
भोजन में रेशों या ‘फाइबर का भरपूर समावेश करें। पत्तेदार साग-सब्जियां खाएं तथा चोकरयुक्त आटे का ही इस्तेमाल करें। ये बेहतरीन फाइबर फूड होते हैं। साबूत अनाज, अंकुरित चने, ताजी सब्जियों का सलाद, भुनी मूंगफली और सेम की फलियां, गाजर, सेब, केले और शहतूत, करौंदा, बेर, अंजीर आदि फल रेशेयुक्त भोजन हैं, इन्हें खूब खाएं।
मीठे पदार्थों का अधिक सेवन-
इस गलत आदत से दांत खराब होते हैं और भूख मर जाती है। अतिरिक्त मिठास शरीर में चर्बी के रूप में बदल जाती है और शरीर के विभिन्न हिस्सों में एकत्र होकर रोग का कारण बन जाती है। अत: इसके लिए-
मिठाई और अन्य मीठे पकवानों से परहेज कीजिए। पौष्टिक नाश्ते या पकवान खाइए, जिनमें चर्बी और घी की मात्रा कम हो। मैदे की जगह आटे के बिस्कुट तथा ब्रेड खाने चाहिए।तलने की जगह भोजन को सेंककर खाएं। मीठी चीजें खाने के बाद भली-भांति कुल्ला जरूरी है।
लगातार उपवास-
अक्सर समयाभाव के कारण कामकाजी लोग भूखे ही काम पर निकल पड़ते हैं या कुछ लोग वजन घटाने के चक्कर में भी खाना-पीना छोड़ बैठते हैं, किंतु इससे शरीर का सामान्य क्रिया-कलाप गड़बड़ा जाता है। लगातार उपवास करने से पेट के अंदर निहित ‘एन्जाइमेटिक (पाचक रस) का संतुलन बिगड़ जाता है या हाजमा खराब हो जाता है। शरीर में निहित इंसुलिन (शक्कर को नियंत्रित
करने वाला तत्त्व) का संतुलन बिगड़ जाता है। हमारे देश में अधिकांश लोग नाश्ता नहीं करते हैं, लेकिन नाश्ता महत्त्वपूर्ण है और शरीर को इसकी बहुत जरूरत होती है। नाश्ता न करने से दोपहर के भोजन के समय इतनी भूख लगती है कि हम आवश्यकता से अधिक खाना खा लेते हैं, जो ठीक नहीं होता। एक साथ ली गई अतिरिक्त पौष्टिकता व्यर्थ हो जाती है तथा यह चर्बी में बदलकर मोटापा बढ़ाती है।
तो क्या करें–
दिन की शुरुआत पौष्टिक नाश्ते से करें। इसमें विटामिन सी युक्त फल, अनाज का दलिया, मलाई रहित दूध, सपरेटा दूध का पनीर व थोड़ा सा मक्खन अवश्य लें। ऐसा नाश्ता शरीर को पर्याप्त ऊर्जा प्रदान करेगा।
रात को भारी भोजन करना-
दिन भर उपवास या नाममात्र का भोजन करना और रात में छककर गरिष्ठ भोजन करके सीधे सोने चले जाना एक गलत और हानिकारक आदत है। इस प्रकार के भोजन से मिली कैलोरीज शरीर में चर्बी बनाती है और नींद भी ठीक से नहीं आती। अत: दिन भर में तीन या चार बार खााइए, किंतु थोड़ा-थोड़ा। इससे पाचन करने वाले रसों का संतुलन बना रहेगा, यानी खाना ठीक से पचेगा और पौष्टिक तत्त्वों का शरीर में संचार सही ढंग से होगा।
बहुत कम पानी पीना-
भारत जैसे गर्म देश में शरीर का पानी जल्दी-जल्दी समाप्त होता रहता है तथा बराबर पानी पीते रहने की जरूरत होती है। जो लोग अधिक प्रोटीन युक्त भोजन लेते हैं उन्हें पानी की अधिक जरूरत होती है और उन्हें अधिक पानी पीना चाहिए। कारण, प्रोटीन का न पचने वाला अंश गुर्दों में एकत्र होता रहता है तथा इसे ‘फ्लश आउट करने या बाहर निकालने के लिए फालतू तरल की आवश्यकता होती है और यह काम पानी द्वारा होता है। पानी ठोस को घोलकर पतला बनाता है, उसे पूरे शरीर में पहुंचाता है। यही मल को बाहर निकालने में मदद करता है तथा शरीर के तापक्रम को संतुलित बनाए रखता है।
सामान्य व्यस्क को प्रतिदिन तीन से चार लीटर तक पानी पीना चाहिए। सादे पानी के साथ ही साथ फलों के रस और सूप के रूप में भी इतनी मात्रा ली जा सकती है। भोजन में फल और सब्जियों का सेवन अधिक करें क्योंकि इनमें करीब 80 प्रतिशत पानी होता है। दूध में पानी की मात्रा 87 प्रतिशत होती है।
अधिक चाय या कॉफी पीना-
इनमें कैफीन होता है और यह एक ऐसा तत्त्व है जिसकी फालतू मात्रा हृदय रोगों को बढ़ावा देती है। कैफीन ‘सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम के लिए खतरनाक होती है। इसके अधिक सेवन से क्रोध जल्दी-जल्दी और अधिक आता है तथा ‘डिप्रेशन भी महसूस होता है। गर्भवती महिलाएं यदि इसका सेवन अधिक करें तो उनके अजन्मे बच्चे पर इसका प्रतिकूल असर होता है। इससे भूख भी मर जाती है तथा भोजन न करने से मां और गर्भस्थ शिशु दोनों को हानि होती है। निराकरण- कॉफी तथा चाय के अधिक सेवन पर रोक लगाएं। दोनों को बार-बार खौलाकर न पीएं। एक बार बनी चाय या कॉफी को रखकर बार-बार खौलाकर कदापि न पीएं।
-डॉ सुनील राणावत
मोबाईल -8358078639
Navkar Ayurveda: