छोटी-सी गाड़ी लुढ़कती जाए,ओ में बठी संझा बाई .. जैसे गीत अब नन्ही बहिनों कि मीठे स्वर सुनाई पड़ेंगे

छोटी-सी गाड़ी लुढ़कती जाए,ओ में बठी संझा बाई .. जैसे गीत अब नन्ही बहिनों कि मीठे स्वर सुनाई पड़ेंगे
संजा पर्यावरण को समर्पित एक लोक पर्व
दलोदा। राजकुमार जैन।
संजा पर्यावरण को समर्पित एक लोक पर्व है। यह पर्व प्रकृति की देन फल-फूल, गोबर, नदी, तालाब आदि के देखरेख के साथ ही हमें इन चीजों को संजोने की प्रेरणा भी देता है। गौ-रक्षा करके हम जहां प्रकृति से रूबरू होते है,संजा का पर्व प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक अर्थात् पूरे श्राद्ध पक्ष में 16 दिनों तक मनाया जाता है। कई स्थानों पर कन्याएं आश्विन मास की प्रतिपदा से इस व्रत की शुरुआत करती हैं। इस त्योहार को कुंआरी युवतियां बहुत ही उत्साह और हर्ष से मनाती हैं। श्राद्ध पक्ष में 16 दिनों तक इस पर्व की रौनक ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक देखी जा सकती है।इस पर्व की रौनक खास तौर पर मालवा, निमाड़, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा तथा अन्य कई क्षेत्रों में देखी जा सकती हैं।
बुधवार से मालवा निमाड़ में घर घर संजा बई आ जाएंगे।कोयल से भी मीठी आवाज में बहन-बेटियों के गले से ये गीत सुनाई पडने लगेंगे।संजाबई 28 सितम्बर तक रहेंगी।
संझा – तू थारा घर जा,कि थारी माय मारगी,
थारी माय कूटगी कि चांद गयो गुजरात,
हिरण का बड़ा-बड़ा दांत।
कि पोर्या पोरई डर गा कि चमकगा।
छोटी-सी गाड़ी लुढ़कती जाए,
ओ में बठी संझा बाई सासरे जाए,
घाघरो घमकाती जाए,
लूगड़ो लटकाती जाए
बिछिया बजाती जाए।
म्हारा आकड़ा सुनार,
म्हारा बाकड़ा सुनार
म्हारी नथनी घड़ई दो मालवा जाऊं
मालवा से आई गाड़ी महिसर होती जाए
एम बठी संझा बाई सासरे जाए।
संझा बाई का सासरे से, हाथी भी आया
घोड़ा भी आया, जा वो संझा बाई
सासरिए…
संजा तो मांगे लाल-लाल फुलड़ा
कां से लाउं बई लाल-लाल फुलड़ा
म्हारा बीरा जी माली घरे जाए
ले बई संजा लाल-लाल फुलड़ा
संजा तो मांगे लड्डू पेड़ा
कां से लाऊं बई लड्डू-पेड़ा
म्हारा बीरा जी हलवाई घरे जाए ले बई संजा लड्डू-पेड़ा
संजा गीत…..
संजा तो मांगे हरो हरो गोबर
कां से लाउं बई हरो हरो गोबर
संजा का पिताजी माली घर गया
वां से लाया हरो हरो गोबर
संजा तो मांगे लाल लाल फुलड़ा
कां से लाउं बई लाल लाल फुलड़ा
संजा का पिताजी माली घर गया
वां से लाया लाल लाल फुलड़ा
संजा तो मांगे मेवा मिठाई
कां से लाउं बई मेवा मिठाई
संजा का पिताजी हलवई घर गया
वां से लाया मेवा मिठाई ।
संजा का सासरे जावांगा, खाटो रोटा खावांगा, संजा की सासू दुपल्ली, चलते रस्ते मारेगी, असी कसी मारे दारिकी, चार गुलाटी खायेगी।
संजा तू बड़ा बाप की बेटी, तू खाए खाजा रोटी, तू पहने मानक मोती, पठानी चाल चले, गुजराती बोली बोले।
जीरो लो भई जीरो लो जीरो लइने संजा बई के दो, संजा को पीयर सांगानेर परण पधार्या गढ़ अजमेर। (इस गीत में वर्णित सांगानेर हमारा राजस्थान में पैतृक गांव है)
संजा बाई का लाड़ाजी, लूगड़ो लाया जाड़ाजी असो कई लाया दारिका, लाता गोट किनारी का….