कर्पूरी ठाकुर सच्चे जननायक थे, उनकी दृष्टि से ही प्रेरित है हमारे शासन का मॉडल- नरेंद्र मोदी
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बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की आज 100वीं जन्म जयंती है. भारत सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की घोषणा की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज जननायक कर्पूरी ठाकुर को एक विशेष लेख लिखकर याद किया।
हमारे जीवन पर कई लोगों के व्यक्तित्व का प्रभाव रहता है. जिन लोगों से हम मिलते हैं, हम जिनके संपर्क में रहते हैं, उनकी बातों का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है. लेकिन कुछ ऐसे व्यक्ति भी होते हैं, जिनके बारे में सुनकर ही आप उनसे प्रभावित हो जाते हैं. मेरे लिए ऐसे ही रहे हैं जननायक कर्पूरी ठाकुर. आज कर्पूरी बाबू की 100वीं जन्म-जयंती है. मुझे कर्पूरी जी से कभी मिलने का अवसर तो नहीं मिला, लेकिन उनके साथ बेहद करीब से काम करने वाले कैलाशपति मिश्र जी से मैंने उनके बारे में बहुत कुछ सुना है।
सामाजिक न्याय के लिए कर्पूरी बाबू ने जो प्रयास किए, उससे करोड़ों लोगों के जीवन में बड़ा बदलाव आया. उनका संबंध नाई समाज, यानि समाज के अति पिछड़े वर्ग से था. अनेक चुनौतियों को पार करते हुए उन्होंने कई उपलब्धियों को हासिल किया और जीवनभर समाज के उत्थान के लिए काम करते रहे. जननायक कर्पूरी ठाकुर जी का पूरा जीवन सादगी और सामाजिक न्याय के लिए समर्पित रहा. वे अपनी अंतिम सांस तक सरल जीवनशैली और विनम्र स्वभाव के चलते आम लोगों से गहराई से जुड़े रहे. उनसे जुड़े ऐसे कई किस्से हैं, जो उनकी सादगी की मिसाल हैं.
उनके साथ काम करने वाले लोग याद करते हैं कि कैसे वे इस बात पर जोर देते थे कि उनके किसी भी व्यक्तिगत कार्य में सरकार का एक पैसा भी इस्तेमाल ना हो. ऐसा ही एक वाकया बिहार में उनके सीएम रहने के दौरान हुआ. तब राज्य के नेताओं के लिए एक कॉलोनी बनाने का निर्णय हुआ था, लेकिन उन्होंने अपने लिए कोई जमीन नहीं ली. जब भी उनसे पूछा जाता कि आप जमीन क्यों नहीं ले रहे हैं, तो वे बस विनम्रता से हाथ जोड़ लेते. 1988 में जब उनका निधन हुआ तो कई नेता श्रद्धांजलि देने उनके गांव गए. कर्पूरी जी के घर की हालत देखकर उनकी आंखों में आंसू आ गए कि इतने ऊंचे पद पर रहे व्यक्ति का घर इतना साधारण कैसे हो सकता है।
कर्पूरी बाबू की सादगी का एक और लोकप्रिय किस्सा 1977 का है, जब वह बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। तब केंद्र और बिहार में जनता सरकार सत्ता में थी। उस समय जनता पार्टी के नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण यानी जेपी के जन्मदिन के लिए कई नेता पटना में इकट्ठा हुए। उसमें शामिल मुख्यमंत्री कर्पूरी बाबू का कुर्ता फटा हुआ था। ऐसे में चंद्रशेखर जी ने अपने अनूठे अंदाज में लोगों से कुछ पैसे दान करने की अपील की, ताकि कर्पूरी जी नया कुर्ता खरीद सकें। लेकिन कर्पूरी जी तो, कर्पूरी जी थे। उन्होंने पैसा तो स्वीकार कर लिया, लेकिन उसे मुख्यमंत्री राहत कोष में दान कर दिया।
उनके राजनीतिक जीवन को एक ऐसे समाज के निर्माण के प्रयासों के लिए जाना जाता है, जहां सभी लोगों में संसाधनों का समान रूप से वितरण हो और अवसरों का लाभ भी मिले। जब सब ओर कांग्रेस का राज था, उन्होंने कांग्रेस-विरोधी लाइन पर चलने का फैसला किया, क्योंकि उन्हें अंदाजा हो गया था कि कांग्रेस अपने बुनियादी सिद्धांतों से भटक गई है।
कर्पूरी ठाकुर जी की चुनावी यात्रा 1950 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में शुरू हुई और यहीं से वह राज्य के सदन में एक ताकतवर नेता के रूप में उभरे। वह श्रमिक वर्ग, मजदूर, छोटे किसानों और युवाओं के संघर्ष की सशक्त आवाज बने। उन्होंने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में गरीबों को शिक्षा मुहैया कराने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। वह स्थानीय भाषाओं में शिक्षा देने के बहुत बड़े पैरोकार थे, ताकि गांवों और छोटे शहरों के लोग भी अच्छी शिक्षा प्राप्त करें। लोकतंत्र, बहस और विमर्श, तो कर्पूरी जी के व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा थे। लोकतंत्र के लिए उनका समर्पण भाव, भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ही दिख गया था। उन्होंने आपातकाल का भी पुरजोर विरोध किया था। जेपी, डॉ. लोहिया और चरण सिंह जी जैसी विभूतियां भी उनसे काफी प्रभावित हुई थीं। समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों को सशक्त बनाने के लिए उन्होंने एक ठोस कार्ययोजना बनाई थी। उनके नेतृत्व में ऐसी नीतियों को लागू किया गया, जिनसे एक ऐसे समावेशी समाज की मजबूत नींव पड़ी, जहां किसी के जन्म से उसके भाग्य का निर्धारण नहीं होता हो। उन्होंने सिर्फ पिछड़ों के लिए ही नहीं, अपितु सभी वर्गों के लिए काम किया।
हमारी सरकार निरंतर जननायक कर्पूरी ठाकुर जी से प्रेरणा लेते हुए काम कर रही है। यह हमारी नीतियों और योजनाओं में भी दिखाई देता है, जिससे देश भर में सकारात्मक बदलाव आया है। भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी त्रासदी यह रही कि कर्पूरी जी जैसे कुछ नेताओं को छोड़कर सामाजिक न्याय की बात बस एक राजनीतिक नारा बनकर रह गई थी। कर्पूरी जी के विजन से प्रेरित होकर हमने इसे एक प्रभावी गवर्नेंस मॉडल के रूप में लागू किया। मैं विश्वास और गर्व के साथ कह सकता हूं कि भारत के 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की उपलब्धि पर आज जननायक कर्पूरी जी जरूर गौरवान्वित होते। गरीबी से बाहर निकलने वालों में समाज के पिछड़े तबके के लोग सबसे ज्यादा हैं, जो आजादी के 70 साल बाद भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित थे।
हम आज सैचुरेशन के लिए प्रयास कर रहे हैं, ताकि प्रत्येक योजना का लाभ, शत प्रतिशत लाभार्थियों को मिले। इस दिशा में हमारे प्रयास सामाजिक न्याय के प्रति सरकार के संकल्प को दिखाते हैं। आज जब मुद्रा लोन से ओबीसी, एससी और एसटी समुदाय के लोग उद्यमी बन रहे हैं, तो यह कर्पूरी ठाकुर जी के आर्थिक स्वतंत्रता के सपनों को पूरा कर रहा है। इसी तरह हमारी सरकार ने एससी, एसटी और ओबीसी आरक्षण का दायरा बढ़ाया है। हमें ओबीसी आयोग (दुख की बात है कि कांग्रेस ने इसका विरोध किया था) की स्थापना करने का भी अवसर प्राप्त हुआ, जो कि कर्पूरी जी के दिखाए रास्ते पर काम कर रहा है। कुछ समय पहले शुरू की गई पीएम-विश्वकर्मा योजना भी देश में ओबीसी समुदाय के करोड़ों लोगों के लिए समृद्धि के नए रास्ते बनाएगी।
पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखने वाले एक व्यक्ति के रूप में मुझे जननायक कर्पूरी ठाकुर जी के जीवन से बहुत कुछ सीखने को मिला है। मेरे जैसे अनेक लोगों के जीवन में कर्पूरी बाबू का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष योगदान रहा है। इसके लिए मैं उनका सदैव आभारी रहूंगा। दुर्भाग्यवश, हमने उन्हें 64 वर्ष की आयु में ही खो दिया, जब देश को उनकी सबसे अधिक जरूरत थी। आज भले ही वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जन-कल्याण के अपने कार्यों की वजह से करोड़ों देशवासियों के दिल और दिमाग में जीवित हैं। वे एक सच्चे जननायक थे।