ग्रामीण महिलाओं की सपनों की हथाई – चिलौरी से बदलती जिंदगियां

वर्षा और प्रदीप – बदलाव की कहानी के नायक मध्यप्रदेश के हरदा जिले के रहटगांव तहसील के एक छोटे से सिलाई सेंटर से उठी एक नई उम्मीद की कहानी –
राकेश यादव की कलम से
चिलौरी। इस सेंटर की बुनियाद वर्षा और प्रदीप ने रखी। दोनों ने मिलकर यह सपना देखा कि गाँव की महिलाएँ आत्मनिर्भर बनें और उनके हुनर को एक नई पहचान मिले। वर्षा चाहती हैं कि चिलौरी सिर्फ एक सिलाई सेंटर न हो, बल्कि एक ऐसा मंच बने जहाँ महिलाएँ खुलकर अपने सपनों को जी सकें। वर्षा के साथ प्रदीप ने भी कदम से कदम मिलाकर इस सपने को हकीकत में बदला। उन्होंने महिलाओं को सिलाई और कढ़ाई का प्रशिक्षण देकर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने का काम शुरू किया। उनका मानना है कि अगर महिलाओं को अवसर और मंच मिले तो वे न केवल अपने परिवार बल्कि समाज को भी संवारती हैं।
राहटगांव का चिलौरी सिलाई सेंटर
राहटगांव का यह सिलाई सेंटर अब सिर्फ कपड़ों की सिलाई और बैग बनाने का स्थान नहीं रहा, बल्कि यह महिलाओं के आत्मनिर्भर बनने का केंद्र बन गया है। यहाँ महिलाएँ कपड़े के बैग बनाती हैं और उन पर पारंपरिक डिज़ाइन और मंडला आर्ट जैसी कलाकृतियाँ उकेरती हैं। इस केंद्र में 20 महिलाएँ जुड़ी हुई हैं। हर दिन यहाँ न सिर्फ सुई-धागे का काम होता है बल्कि उम्मीदों और सपनों की बुनाई भी होती है।
हथाई में खुलती सपनों की गाथा
जब मैंने चिलौरी समूह की महिलाओं से मुलाकात की, तो एक अनोखा अहसास हुआ। उनके साथ बैठकर हथाई (गपशप) करते हुए लगा कि मैं उनके सपनों और संघर्षों के बीच कहीं खो गया हूँ।
लाली दीदी की कहानी:
लाली प्रजापति ने अपनी कहानी साझा करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ कॉस्मेटिक दुकान पर काम किया, लेकिन सेहत खराब होने के कारण नौकरी छोड़नी पड़ी। जब उन्होंने चिलौरी के बारे में सुना, तो उम्मीद की एक नई किरण जगी। चिलौरी में आकर उन्होंने बैग पर पेंटिंग करना सीखा और धीरे-धीरे कला में निपुण हो गईं। लाली ने गर्व से कहा, “चिलौरी ने मुझे सिर्फ हुनर ही नहीं बल्कि आत्मविश्वास भी दिया है। अब मैं अपने पैरों पर खड़ी हूँ और अपने परिवार की मदद कर पा रही हूँ।”
चंचल दीदी की कहानी
चंचल प्रजापति ने बताया कि 12वीं कक्षा में अच्छे अंक पाने के बावजूद भी आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख पाईं। पारिवारिक दबाव और काम की तलाश में उन्होंने स्कूल में छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। लेकिन जब उन्हें चिलौरी के बारे में पता चला, तो उन्होंने खुद को फिर से संवारने का फैसला किया। चिलौरी में पेंटिंग और सिलाई सीखने के बाद वे न सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत हुईं, बल्कि आत्मसम्मान भी बढ़ा।
“यहाँ मुझे अपनी कला के लिए पहचान मिली। अब मैं अपने हुनर से परिवार को सहारा दे पा रही हूँ।”
कोमल दीदी की कहानी
कोमल तमोली की कहानी संघर्ष और उम्मीद का संगम है। दसवीं कक्षा में बड़े पापा की मौत के कारण पढ़ाई छूट गई। खाली वक्त में खुद को खोजते हुए उन्होंने सिलाई सेंटर का रुख किया। कुछ महीनों में ही उन्होंने सिलाई और बैग बनाने का हुनर सीख लिया। कोमल कहती हैं, “पहले मैं खुद को कमजोर मानती थी, लेकिन चिलौरी ने मेरी सोच बदल दी। अब मैं आत्मनिर्भर हूँ और अपने परिवार के लिए मददगार भी।”
बदलाव की दस्तक
वर्षा बताती हैं कि शुरुआत में महिलाओं को जोड़ना चुनौतीपूर्ण था। समाज की धारणाओं को तोड़ते हुए उन्होंने एक ऐसी जगह बनाई जहाँ महिलाएँ खुलकर अपने विचार साझा कर सकें और आत्मनिर्भर बनने की राह पर चल सकें।
अर्थपूर्ण बदलाव
– आर्थिक सशक्तिकरण: महिलाएँ अब खुद कमा रही हैं और आत्मनिर्भर बन रही हैं।
– शिक्षा और साक्षरता कई महिलाएँ अपनी अधूरी पढ़ाई को भी जारी रखने की सोच रही हैं।
– आत्मविश्वास का संचार अब वे केवल गृहिणी नहीं बल्कि कलाकार और कारीगर भी हैं।
हथाई में खुलते सपनों के पंख
हथाई में हर महिला ने अपने सपनों और इच्छाओं को बेझिझक साझा किया। किसी का सपना है कि वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाए, तो कोई खुद के पैरों पर खड़ा होना चाहती है। वर्षा और प्रदीप के प्रयासों ने उन्हें यह भरोसा दिलाया कि वे कुछ भी कर सकती हैं।
वर्षा कहती हैं,
“हमारा सपना सिर्फ आजीविका तक सीमित नहीं है। हम चाहते हैं कि महिलाएँ यहाँ सीखें, आत्मनिर्भर बनें और समाज में अपनी पहचान बना सकें।”
लेखक की नज़र
जब मैंने चिलौरी की महिलाओं के साथ हथाई की, तो महसूस किया कि यह सिलाई सेंटर केवल काम करने की जगह नहीं बल्कि हौसलों की पाठशाला है। यहाँ हर महिला का सपना, उसकी मेहनत और उसकी पहचान बस एक सुई और धागे से नहीं बल्कि उसके आत्मविश्वास से बुनी जा रही है।
*सपनों की कूची से रंगते बदलाव*
चिलौरी ने न केवल ग्रामीण महिलाओं को आजीविका का साधन दिया, बल्कि उन्हें आत्मसम्मान और आत्मविश्वास भी लौटाया। यह एक ऐसा मंच है जहाँ महिलाएँ सिर्फ सिलाई नहीं बल्कि अपनी जिंदगी को नए रंगों से सजाती हैं।
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-लेखक राकेश यादव
लेखक के बारे में -राकेश यादव, एक सामाजिक कार्यकर्ता है, पिछले 14 वर्षों में अलग-अलग सामाजिक संस्थाओ के साथ कार्य कर रहे है युवाओं के विकास की यात्रा में सक्रिय रूप से शामिल हैं। एक युवा सहजकर्ता के रूप में कार्य करना उनके लिए गर्व का विषय है, जिसमें वह युवाओं के साथ गहरे जुड़ाव और संवाद स्थापित करते हैं। उनके कार्य का मुख्य उद्देश्य युवाओं को सुनना, समझना और उन्हें सशक्त बनाना है। इस दौरान उन्होंने विभिन्न युवा समुदायों के साथ मिलकर काम किया, उनकी समस्याओं को समझा और उनके समाधान के लिए रचनात्मक लेखन और गतिविधियों का सहारा लिया। युवाओं के साथ संवाद और सहयोग उनके अनुभव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो उन्हें प्रेरणा और सीखने का निरंतर अवसर प्रदान करता है।