अंतर मन की जागृति बिना सम्यक दर्शन की प्राप्ति नहीं -साध्वी श्री अमीदर्शा श्रीजी

/////////////////////////////////////
अमृत प्रवचन श्रृंखला प्रवाहित
नीमच, 21 दिसंबर 2023 ( केबीसी न्यूज़) । क्रोध के त्याग और अंतर मन की जागृति के बिना सम्यक दर्शन की प्राप्ति नहीं हो सकती है । मानव जीवन बड़ी मुश्किल से मिलता है । इसमें क्रोध नहीं करना चाहिए और विनम्रता को जीवन में आत्मसात करना चाहिए । क्योंकि सरलता ही व्यक्ति को सम्यक दर्शन की प्राप्ति कराती है । प्रभु के प्रति प्रेम अंतरात्मा से जागृत होना चाहिए तभी आत्मा का कल्याण हो सकता है । यह बात साध्वी श्री अमिपूर्णा श्रीजी महाराजसा की शिष्या श्री अमिदर्शा श्रीजी महाराज साहब ने कहीं । वे श्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट नीमच के तत्वावधान में पुस्तक बाजार स्थित नवीन आराधना भवन में आयोजित धर्म प्रवचन सभा में बोल रही थी । उन्होंने कहा कि जिन शासन मिला है तो हमें गर्व करना चाहिए । संसार के तूच्छ सुखों के कारण हमें सम्यक दर्शन नहीं मिलता है । भौतिक सुख तो हर जन्म में मिलेंगे ।लेकिन परमात्मा की भक्ति का सुख मनुष्य जन्म में ही मिलता है । ऐसे में हमें प्रभु सम्यक दर्शन कैसे प्रदान करेंगे हमें चिंतन करना होगा । संसार में व्यक्ति के पास परिवार, पड़ोसी, मित्र से लड़ने का समय है लेकिन परमात्मा से झगड़ने का समय नहीं है । संसार में लड़ेंगे तो पाप कर्मबंधन बढ़ेंगे लेकिन परमात्मा से लड़ेंगे तो सम्यक दर्शन की प्राप्ति होगी। स्वामी वात्सल्य हो तो हजारों लोग आते हैं लेकिन तपस्या हो तो हजार लोग भी नहीं आते हैं । चिंतन करना होगा कि हम क्या कर रहे हैं ? कहां जा रहे हैं ! क्रोध को अपनाएंगे तो सम्यक दर्शन दूर होगा और नरक जाना तय है । जन्म-मरण का विराम कैसे होगा ! जीव दया का पालन करना चाहिए और अपने बच्चों से भी मारपीट नहीं करना चाहिए । उन्हें भी प्रेम से ही समझाने का प्रयास करना चाहिए तभी हमारा जीवन सफल हो सकता है और हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है। मनुष्य पाप कर्मों की ओर अग्रसर है समय दुर्त गति से बढ़ रहा है । वर्षों से प्रवचन सुन रहे हैं फिर भी घर पहुंच कर सास-बहू में विवाद क्यों होता है ? यह चिंतनीय है कि हमारे अंदर परिवर्तन क्यों नहीं हो रहा है ? हम प्रवचन तो सुनते हैं लेकिन जीवन में आत्मसात नहीं करते हैं । प्रवचन को जीवन में आत्मसात किए बिना आत्मा का कल्याण नहीं हो सकता है । रोहिंग्या चोर ने महावीर के एक शब्द को जीवन में आत्मसात किया और मोक्ष को प्राप्त किया था । महावीर ने जो कहा है वह कभी गलत नहीं होता है । महावीर कभी झूठ नहीं बोलते हैं, इसलिए महावीर के उपदेशों को जीवन में आत्मसात कर आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए । एक बूंद पानी में असंख्य जीव होते हैं । संसार में रहकर मजबूरी में गलत पाप कर्म करना पड़ते हैं तो उसका हमें प्रायश्चित कर जीव दया का पालन करना चाहिए । महावीर के उपदेश या एक शब्द भी हमारी आत्मा को पवित्र कर सकता है । नवकार के महत्व को समझना होगा हमें नवकार गर्भ से मिला है फिर भी हम नवकार से हमारा कल्याण क्यों नहीं हो रहा हैं । हमने नवकार को सुना है लेकिन माना नहीं है, समझा नहीं है, इसीलिए हमारे अंदर परिवर्तन नहीं हो रहा है । हमें नवकार क्यों स्पर्श नहीं कर रहा है ? हमें चिंतन करना होगा। नवकार के सार को समझना होगा।मानव जीवन में मिला समय बहुत महत्वपूर्ण है । समय हमारे हाथ से जा रहा है, इसलिए सदैव पुण्य परमार्थ के लिए धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए तभी हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है । हम पारसनाथ की पूजा कर रहे हैं फिर हम कंचन क्यों नहीं बन रहे हैं ? चिंतन का विषय है । मीरा गिरधर-गिरधर पुकारती हुई ब्रजभूमि में गई और कृष्ण को प्राप्त किया और परमात्मा में विलीन हो गई थी । हमारे समर्पण में कहीं ना कहीं कमी है, इसीलिए हम परमात्मा की भक्ति को प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं । जीव दया का पालन करते हुए प्रत्येक जीव में परमात्मा के दर्शन करना चाहिए तभी हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है । इस जन्म में ही संकल्प लेकर आत्मा को परमात्मा बनाना है और क्रोध नहीं करना है तभी हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है ।
….
धार्मिक शिविर में पंजीयन में उत्साह दिखाएं…
साध्वी अमिदर्शा श्रीजी महाराज साहब ने आह्वान किया है कि जैन भवन में बच्चों का एक दिवसीय धार्मिक संस्कार प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया जा रहा है। सभी अपने-अपने बच्चों का पंजीयन अवश्य कराए और बच्चों को बचपन से ही धार्मिक संस्कारों से जोड़े। धार्मिक संस्कारों को अपनाएं नहीं तो हमें वृद्ध आश्रम का मुंह देखना पड़ेगा । प्रशिक्षण शिविर में विभिन्न धार्मिक संस्कारों का प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा ।