मनोरंजन

अमिताभ की शादी में जया के भाई बने थे असरानी, आज भी बुलाती हैं सर

**********************

असरानी ने पुणे स्थित फिल्म इंस्टीट्यूट में 1966 में प्रशिक्षण पूरा कर लिया, लेकिन फिल्मों में काम नहीं मिल रहा था। तब वे इंस्टीट्यूट में ही इंस्ट्रक्टर बन गए। एक बार ऋषिकेश मुखर्जी, गुलजार के साथ वहां पहुंचे। उन्हें देखकर असरानी ने उनसे कहा-“दादा, आपने मुझे काम देने के लिए कहा था।’ इस पर मुखर्जी बोले-“देगा, काम देगा, पहले यह बताओ कि जया भादुड़ी कौन है?’ जया भादुड़ी असरानी की छात्रा थी, जो आज भी असरानी से मिलती हैं तो “सर’ कहती हैं। चंद लोगों की मौजूदगी में हुई अमिताभ बच्चन की शादी में असरानी जया के भाई बनकर शामिल हुए थे। इस बीच असरानी ने गुलजार से पूछा कि ऋषि दा क्यों आए हैं तो उन्होंने बताया-“गुड्‌डी को ढूंढने आए हैं।’ ऐसे तय किया जयपुर से मुंबई तक का सफर…

असरानी को ‘गुड्‌डी’ में एक ऐसे लड़के का रोल मिला जो हीरो बनने मुंबई आता है, लेकिन जूनियर आर्टिस्ट बनकर रह जाता है। इसके बाद “जुर्माना'(1979) तक ऋषिकेश मुखर्जी ने असरानी को अपनी हर फिल्म में लिया। इन संबंधों को असरानी की जुबानी सुनिए-“मैं ऋषि दा से उनके आखिरी दिनों में अस्पताल में मिलने गया तो उन्होंने एक कागज पर लिखकर दिया-“असरानी मुखर्जी’। वो कहना चाहते थे कि तुम मेरे बेटे हो।’

यह 1967 की बात है। जयपुर के एमआई रोड पर एक युवक मस्ती से साइकिल चला रहा था। दूसरा साइकिल के डंडे पर बैठा हुआ था और हैंडिल के ऊपर से अपना एक पैर लटका रखा था। एमआई रोड पर जहां आज गणपति प्लाजा है, वहां तब राज्य सरकार का मोटर गैराज हुआ करता था। यहां पहुंचते ही आगे डंडे पर बैठे युवक ने इशारा करके साइकिल रुकवाई। वह साइकिल से उतरा और एक होर्डिंग के पास जाकर उसे निहारने लगा। साइकिल चला रहे युवक ने पास जाकर पूछा-“यह क्या पागलपन है?’ उसने होर्डिंग की ओर इशारा करके कहा-“इसे देख रहे हो?’ यह “मेहरबान’ फिल्म का होर्डिंग था। होर्डिंग को एकटक देखे जा रहा युवक बोला-“कभी मेरा भी ऐसा ही पोस्टर लगेगा।’ साइकिल चला रहे दोस्त ने कहा-“हां, तेरा भी जल्दी ही लग जाएगा। चिंता मत कर।’

– ठीक इसी साल, इसी होर्डिंग पर फिल्म “हरे कांच की चूड़ियां’ का पोस्टर लगा था, जिसमें विश्वजीत, हेलन आदि के साथ ही एक कोने में असरानी की भी तस्वीर छपी थी।

– असरानी यानी जयपुर के गोवर्धन असरानी, जिन्होंने बाद में हिंदी फिल्मों में “कॉमेडी किंग’ के रूप में बरसों तक राज किया। उन्हें बैठाकर उस दिन जो साइकिल चला रहे थे, वह थे उनके बचपन के दोस्त मदन शर्मा जो आकाशवाणी में प्रोग्राम एक्जीक्यूटिव के पद से अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

– “हरे कांच की चूड़ियां’ के साथ ही असरानी का फिल्मी सफर शुरू हुआ। असरानी बचपन से ही जयपुर में रेडियो से जुड़ गए थेे। बाद में उन्होंने रेडियो में नाटक भी किए। जब उन्होंने मुंबई जाने का फैसला किया तो जयपुर में रंगकर्मी दोस्तों ने उनकी मदद के लिए दो नाटक किए-“जूलियस सीजर’ और पीएल देशपांडे का “अब के मोय उबारो’।

– इसमें मदन शर्मा, गंगा प्रसाद माथुर, नंदलाल शर्मा आदि लोगों ने हिस्सा लिया और नाटकों के टिकट से जो थोड़ी-बहुत आय प्राप्त हुई, वह असरानी को मुंबई जाने के लिए दे दी गई। असरानी के पिता 1936 में कराची से जयपुर आ गए थे। असरानी के बड़े भाई नंद कुमार असरानी जयपुर की न्यू कॉलोनी में पिछले लगभग पचास साल से “लक्ष्मी साड़ी स्टोर्स’ नाम से दुकान चलाते हैं।

उन्होंने बताया कि उनके पिता ने पाकिस्तान से आने के बाद सबसे पहले एमआई रोड स्थित ‘इंडियन आर्ट्स कार्पेट फैक्ट्री’ में नौकरी की। जयपुर में 1 जनवरी, 1941 को जन्मे असरानी की पढ़ाई जयपुर के सेंट जेवियर स्कूल और राजस्थान कॉलेज में हुई। जयपुर में वह मित्रों के बीच “चोंच’ नाम से मशहूर थे। असरानी 1962 में मुंबई पहुंचे। उनकी 1963 में अचानक किशोर साहू और ऋषिकेश मुखर्जी से मुलाकात हुई तो उन्होंने पुणे में एफटीआईआई से अभिनय का कोर्स करने की सलाह दी।

1966 में यह पाठ्यक्रम करने के बाद भी उन्हें ज्यादा काम नहीं मिला। किशोर साहू ने “हरे कांच की चूड़ियां’ (1967) और ऋषिकेश मुखर्जी ने “सत्यकाम'(1969) में उन्हें सपोर्टिंग एक्टर का काम दिया। बाद में वे गुलजार की निर्देशित पहली फिल्म “मेरे अपने’ (1971) में मीना कुमारी, विनोद खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा के साथ दिखाई दिए तो उनका नोटिस लिया गया। इसके बाद जो कुछ है वह इतिहास है, जिसमें उनके नाम 350 से ज्यादा फिल्में दर्ज हैं।

 

उन्हें सर्वश्रेष्ठ कॉमेडियन के रूप में फिल्म “बालिका वधू’ (1977) और “आज की ताजा खबर’ (1973) के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिले। “आज की ताजा खबर’ और “नमक हराम’ में काम करते हुए उन्हें मंजु बंसल से इश्क हो गया, जिनसे उन्होंने बाद में शादी की। राजेश खन्ना उनके प्रगाढ़ मित्र बन गए थे, जिनके साथ ही उन्होंने 25 फिल्मों में काम किया।

शोले में ऐसे बने थे ‘अंग्रेजों के जमाने के जेलर’

असरानी ने फिल्म “शोले’ में अपनी चर्चित भूमिका अंग्रेजों के जमाने का जेलर’ के लिए बड़ी तैयारी की थी। उन्हें सलीम-जावेद ने एक पुस्तक लाकर दी-“वर्ल्ड वॉर सेकेंड’ जिसमें अडोल्फ हिटलर की तस्वीरें थीं। उन्हें वैसा ही लुक बनाने के लिए कहा गया। कॉस्ट्यूम तैयार करने के लिए अकबर गब्बाना और विग बनाने वाले कबीर को बुलाया गया। पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट में हिटलर की रिकॉर्डेड आवाज थी, जो छात्रों को ट्रेनिंग देने के काम आती थी। इसमें हिटलर जिस अंदाज में कहता है-“आई एम आर्यन।’ ठीक उसी अंदाज में असरानी ने डायलॉग बोला-“हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं।’ बाद में “हा हा’ भी इसमें वैसे ही आता था। हिटलर अपनी आवाज के इस घुमाव से पूरे देश को हिप्नोटाइज कर देता था।

By- Bolly Glam fb

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
site-below-footer-wrap[data-section="section-below-footer-builder"] { margin-bottom: 40px;}