मध्य प्रदेश में गांव और शहर सरकार के प्रतिनिधि भी चुनावी रण में

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पार्टी नेताओं का मानना है कि इन सभी नेताओं को चुनाव लड़ने और लड़वाने का अनुभव है, जिसका लाभ विधानसभा चुनाव में मिलेगा।
✍🏻विकास तिवारी
भोपाल। भाजपा हो और कांग्रेस दोनों दलों ने गांव और शहर सरकार के प्रतिनिधियों को चुनाव मैदान में उतारकर बड़ा संदेश दिया है। दरअसल, जिला-जनपद या ग्राम पंचायत हो या फिर नगर निगम, नगर पालिका या नगर परिषद, सबसे कठिन चुनाव इनके ही होते हैं। दलीय स्थिति से अधिक व्यक्ति की छवि और संपर्क से ही जीत-हार तय होती है।
पूर्व पार्षद को प्रत्याशी बनाया
इसे देखते हुए भाजपा और कांग्रेस ने मिशन 2023 के लिए जिला व जनपद पंचायत के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सदस्य, नगर पालिका अध्यक्ष और नगर निगम के वर्तमान या पूर्व पार्षद को प्रत्याशी बनाया है। इसके साथ ही संगठन में लंबे समय से काम कर रहे पदाधिकारियों को भी मौका दिया गया है। पार्टी नेताओं का मानना है कि इन सभी नेताओं को चुनाव लड़ने और लड़वाने का अनुभव है, जिसका लाभ विधानसभा चुनाव में मिलेगा।
भाजपा और कांग्रेस ने इन पर लगाया दाव
भाजपा ने इन पर लगाया दाव-
भाजपा भी इस मामले में पीछे नहीं रही। पार्टी ने खंडवा जिला पंचायत अध्यक्ष कंचन तनवे, सीहोर जिला पंचायत अध्यक्ष गोपाल सिंह, शिवपुरी जिला पंचायत अध्यक्ष नेहा यादव के पिता महेंद्र यादव, जिला पंचायत सदस्य पदमेश गौतम, इंदौर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष राकेश गोलू शुक्ला, जिला पंचायत सदस्य छाया मोरे, शिवराम कन्नोज, संतोष बरकड़े और लखन वर्मा को प्रत्याशी बनाया है।
मप्र विपणन बोर्ड की उपाध्यक्ष मंजू दादू, मंडला जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं संपतिया उइके, केपी त्रिपाठी, राधा सिंह, जिला पंचायत सदस्य रहे अनिरुद्ध मारू, महेश राय, प्रहलाद लोधी, शरद कोल, सुरेश धाकड़, जनपद पंचायत अध्यक्ष रहे चंदर सिंह वास्कले, वेलसिंह भूरिया, जजपाल सिंह जज्जी, संजय शाह मकड़ाई, पार्षद रहे भगवानदास सबनानी और जितेंद्र पंड्या भी चुनाव मैदान में हैं।
दिग्विजय सरकार के दौरान हुआ था जिला सरकार का प्रयोग-
कांग्रेस ने रीवा जिला पंचायत अध्यक्ष रहे अभय मिश्रा, इंदौर नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष चिंतामणि चिंटू चौकसे, सीहोर जिला पंचायत सदस्य शशांक सक्सेना, छोड़ाडोंगरी जनपद पंचायत अध्यख राहुल उइके, महापौर रहे पारस सकसेचा, उमराव सिंह गुर्जर, परशुराम सिसोदिया, हिम्मत सिंह श्रीमाल, राजेंद्र सिंह सोलंकी, विवेक पटेल, चैन सिंह वरकड़े, मिथिलेश जैन, नीलेश उइके, कमलेश शाह, राजवीर सिंह बघेल, राजन मंडलोई सहित 20 प्रत्याशी गांव और शहर सरकार के वर्तमान या पूर्व प्रतिनिधियों को बनाया है।
पदाधिकारियों का तर्क यह है कि पंचायत और नगरीय निकाय की राजनीति करने वाले संपर्क जीवंत होते हैं। गांव-मोहल्ले में सबको साधकर चलना बड़ी चुनौती होती है। इसमें जो सफल हो जाता है, वह पंच से लेकर सरपंच, जनपद से जिला पंचायत सदस्य से अध्यक्ष-उपाध्यक्ष, वार्ड पार्षद से निकाय अध्यक्ष तक बन जाता है। दिग्विजय सरकार के समय जिला सरकार का प्रयोग किया था। 1998 में पार्टी पंचायत प्रतिनिधियों को विधानसभा चुनाव में उतारा था, जिसके परिणाम संतोषजनक रहे थे। इस बार भी यही किया गया है।