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राग व मोह के बंधन को छोड़े, संसार की आसक्तियों का त्याग करें- संत श्री पारसमुनिजी

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मन्दसौर। ज्ञान आत्मा का गुण है, आत्मा से ज्ञान कभी पृथक नहीं होता बल्कि समय समय पर प्रकट किया जाता है तो उस ज्ञान का रिवीजन हो जाता है। आत्मा सम्यक दृष्टि हो या मिथ्या दृष्टि, ज्ञान कर्म के आवरण में दबा रहता है। जब कोई सद्पुरूष या गुरू उस ज्ञान के आवरण को साफ कर देता है तो हमारे मन मस्तिष्क में ज्ञान उजागर हो जाता है।
उक्त उद्गार परम पूज्य आचार्य श्री विजयराजजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती शिष्य श्री पारसमुनिजी ने नवकार भवन शास्त्री कॉलोनी में आयोजित धर्मसभा में कहे। आपने मंगलवार को धर्मसभा में कहा कि ज्ञान खरीदा व बेचा नहीं जा सकता। ज्ञान लेने देने की विषय वस्तु नहीं है। बल्कि ज्ञान आत्मा का स्वाभाविक रूप है, प्रभु महावीर को जब केवल ज्ञान हो गया और वे प्रतिबोध देने लगे तो कई भावी आत्माये भी उनके प्रभाव के कारण केवल ज्ञानी होकर मोक्ष मार्ग की ओर प्रवृत्त होने लगी तब प्रभु महावीर से उनके प्रथम गणधर गौतम स्वामी ने प्रश्न किया कि मैं अभी तक केवल ज्ञान से पूर्ण क्यों नहीं हुआ तो प्रभु महावीर ने उन्हें बताया कि तुम्हारा मोह व राग ही तुम्हारे केवल ज्ञान में सबसे बड़ी बाधा है, इसलिये सर्वप्रथम मोह व राग के बंधन से मुक्त होने का प्रयास करो। जिस दिन तुम राग व मोह का त्याग कर दोगे उसी दिन तुम्हें केवल ज्ञान हो जायेगा। इसलिये जीवन में यदि परम सुख पाना है तो राग व मोह के बंधनों को छोड़ो।
अपना स्वभाव बदलो- पारसमुनिजी ने कहा कि मनुष्य को यदि मोक्ष गति पाना है तो अपना स्वभाव बदलना पड़ेगा। यह संसार जेल की भांति है उसमें राग व मोह के बंधन है, हमें इन बंधनों से मुक्त होना है। मनुष्य ऐसा प्रयास करे कि राग व मोह कम हो।
संसार की आसक्तियों को त्याग करें- पारसमुनिजी ने उत्तराध्ययन सूत्र की नवी राजा का वृतांत बताते हुए कहा कि जब उस राजा के शरीर में भयंकर वेदना हुई तो उसकी  रानियों ने अपने हाथों से चंदन घिसने के लिये कार्य किया। चंदन घिसते हुए जब कंगनों की आवाज आई तो राजा को और अधिक वेदना हुई तब राजा को एकांकी जीवन की महत्ता मालूम हुई और उन्होंने संयम जीवन ग्रहण किया। राजा को कंगन जो कि जड़ पदार्थ है उससे संयम जीवन की प्रेरणा मिली। इसलिये हमें भी संसार की आसक्ति को छोड़ चाहिये। धर्मसभा में अभिनवमुनिजी ने भी अपने वि चार रखे। धर्मसभा में बड़ी संख्या में धर्मालुजनों ने संतों के अमृतमयी वाणी का धर्मलाभ लिया।
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बच्चों को संस्कारित करो, उन्हें धर्म से जोड़ो-साध्वी श्री अर्हताश्रीजी
मन्दसौर। आजकल की युवा पीढ़ी व्यसनों की ओर आसक्त हो रही है। संताने अपने माता-पिता की सम्पत्ति नशे में उड़ा रही है। उन्हें व्यसनों की ओर जाने से रोकना है तो सर्वप्रथम हमें बच्चों को कम आयु से ही संस्कारित करना पड़ेगा, उन्हें धर्म से जोड़ना पड़ेगा। संस्कारित व धर्म से जुड़ी युवा पीढ़ी ही व्यसनों से बची रहेगी।
उक्त उद्गार परम पूज्य जैन साध्वी श्री अर्हताश्रीजी म.सा. आदि ठाणा 4 ने चौधरी कॉलोनी स्थित रूपचांद आराधना भवन में धर्मसभा में कहे। आपने मंगलवार को धर्मसभा में संस्कारों का महत्व बताते हुए कहा कि  हर रविवार यहां बच्चों का शिविर लग रहा है माता-पिता अपनी संतान को यहां भेजे यदि संतान धर्म से जुड़ेगी तो पुरा घर परिवर धर्म से जुड़ेगा। आपने कहा कि जिस प्रकार बच्चों को स्कूल व ट्यूशन भेजना जरूरी है उसी प्रकार बच्चों को धर्म, संस्कृति, अध्यात्म का ज्ञान जरूरी है। रविवार को जब बच्चों के स्कूलों की ट्यूशन की छुट्टी होती है उस दिन अवश्य ही बच्चों को मंदिर या धर्म स्थान पर लाये। उन्हें सत्संग श्रवण कराये। धर्मसभा के बाद प्रभावना अशोक कर्नावट परिवार की ओर से वितरित की गई।

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