
***************
आलोट विधानसभा से कांग्रेस दावेदारो की लम्बी लिस्ट
✍️ राजेन्द्र देवड़ा
आलोट विधानसभा से विधायक मनोज चावला के अलावा पूर्व सांसद प्रेमचन्द गुड्डू शिक्षक कालूराम परमार पूर्व जिला जनपद अध्यक्ष प्रहलाद वर्मा और प्रकाशचन्द ररोतिया जेसे कही दावेदार ताल ठोंक रहे है।
इन सभी का दावा आलोट विधानसभा सीट पर भाजपा को यह दे सकते करारी हार
यह सभी दावेदार विधानसभा क्षेत्र में लगातार जनसंपर्क बनाए हुए है।
स्थानीय नेतृत्व भी अब परिर्वतन और स्थानीय उम्मीदवार चाहता है। जिसको लेकर कांग्रेस नेताओ ने भोपाल तक विरोध कर चुके है।
राजनैतिक संग्राम आलोट विधानसभा क्षेत्र में बाहरी नेतृत्व ने जनता की सेवा छोड़कर अपनो का भला किया आलोट विधानसभा इस बात का साक्षी है जो यहा विधायक या मंत्री बना व एक व्यक्ति विशेष की गोदी में बैठकर उसकी शोभा बढाता है । जनसंघ के समय से यह प्रथा प्रचलित है जो आजतक जारी है। केंद्रीय मंत्री हो या स्थानीय विधायक सभी की यही कहानी रही है। जिसे गुटबाजी को बढ़ावा मिलता रहा है।
आलोट विधानसभा चुनाव की दोनो ही दलो में बिसात पूरी तरह बिछ चुकि है। मुख्य रूप से भाजपा और कांग्रेस ही मैदान में है लिहाजा इन दोनो के बीच ही सीधा मुकाबला माना जा रहा है।
भाजपा ने कुछ प्रत्याशीयो की सूची जारी कर दी वही कांग्रेस में सस्पेंस बरकरार बना हुआ है।
आलोट विधायक मनोज चावला की इस बार दाल पतली है वह अपनी ही पार्टी नेताओ का विरोध झेल रहे है।
2018 में आलोट विधानसभा क्षेत्र से मनोज चावला कांग्रेस से निर्वाचित होकर पहुंच थे। वह अपनी पार्टी नेताओ और कार्यकर्ताओ को संतुष्ट नही कर पाए जिससे गुटबाजी खुलकर सामने दिखाई दे रही है।
आलोट विधानसभा क्षेत्र की जनता ने विधायक मनोज चावला से पांच साल तक आस बनाए रखी लेकिन विधायक जनता की अपेक्षाओ पर खरा नही उतर पाए,,,,!
आलोट इक्कीसवीं सदी के मध्य प्रदेश में अबतक चार चुनाव हुए। चार में से तीन में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा वर्ष 2003 के चुनाव में तो सड़क पानी बिजली जैसे चुनावी मुद्दो पर जनता ने कांग्रेस सरकार को उखाड़ फैका था। वर्ष 2008 के चुनाव में कांग्रेस गुटबाजी के चलते हारी। फिर वर्ष 2013 में हुए चुनाव में कांग्रेस नेतृत्व वली तत्कालीन यूपीए सरकार की एंटी इनकमबेंसी और देश प्रदेश में मोदी लहर के चलते प्रदेश में भी कांग्रेस को सत्ता से बाहर पहुंचा दिया था।
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत तो नही मिला लेकिन वह निर्दलीय विधायको के समर्थन से सरकार बनाने सफल हो गई थी। 2023 के चुनाव की तस्वीर पिछले चारो चुनाव से अलग रहने की उम्मीद है। इस बार न तो कोई मुद्दा अब तक नही बन पाया जो चुनाव को प्रभावित करे अलबत्ता सौगात और गारंटियो के बीच चुनाव लड़ा जा रहा है।अब यह सारे मुद्दे खत्म हो गए है।