सक्षम के द्वारा अष्टावक्र जयंती पर ऋषि अष्टावक्र जी को स्मरण किया

शरीर के आठ अंगों से टेढ़े-मेढ़े होने के बाद भी महर्षि अष्टावक्र ने सनातन वैदिक संस्कृति में उच्च स्थान प्राप्त किया था
(रविन्द्र पाण्डेय)
अद्वैत वेदांत के महत्वपूर्ण ग्रंथ अष्टावक्र गीता के रचयिता महर्षि अष्टावक्र आठ जगहों से टेढ़े-मेढ़े थे इसी आधार पर इस गीता का नाम अष्टावक्र गीता पड़ा। महर्षि अष्टावक्र दिव्यांगों के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है । महर्षि अष्टावक्र जी इनका शरीर आठ जगहों से विकृत था उसके बाद भी संपूर्ण विश्व में अद्वैत वेदांत के बहुत बड़े विद्वान सनातन वैदिक संस्कृति में आपने बहुत बहुत उच्च पद प्राप्त किया । विदेह राज जनक के गुरु के रूप में आपको प्रतिष्ठा मिली वर्तमान परिपेक्ष में विशेष रूप से दिव्यांगों के लिए प्रेरणा के केंद्र महर्षि अष्टावक्र जी जयंती पर हार्दिक नमन करते हुए सक्षम के वार्षिक आयोजनो में अष्टावक्र जयंती पर महत्वपूर्ण आयोजन किया जाता है। दिव्यांगजनों को महर्षि अष्टावक्र जी ने प्रेरणा दी है।
उद्दालक ऋषि अपने शिष्य कहोड़ की प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी पुत्री सुजाता का विवाह कहोड़ से कर दिया। सुजाता के गर्भ ठहरने के बाद ऋषि कहोड़ सुजाता को वेदपाठ सुनाते थे। तभी सुजाता के गर्भ से बालक बोला- ‘पिताजी! आप त्रुटि पुर्ण पाठ कर रहे हैं। इस पर कहोड़ को क्रोध आ गया और शाप दिया तू आठ स्थानों से वक्र (टेढ़ा) होकर पैदा होगा। कुछ दिन बाद कहोड़, राजा जनक के दरबार में एक महान विद्वान बंदी से शास्त्रार्थ में हार गए और नियम अनुसार, कहोड़ को जल समाधि लेनी पड़ी। कुछ दिनों बाद अष्टावक्र का जन्म हुआ।
एक दिन मां से पिता की सचाई पता चली, तो अष्टावक्र दुखी हुए और बारह साल का अष्टावक्र बंदी से शास्त्रार्थ करने के लिए राजा जनक के दरबार में पहुंचा। सभा में आते ही बंदी को शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दी, लेकिन अष्टावक्र को देखकर सभी पंडित और सभासद हंसने लगे, क्योंकि वो आठ जगह से टेढ़े थे, उनकी चाल से ही लोग हंसने लगते थे। सभी अष्टावक्र पर हंस रहे थे और अष्टावक्र सब लोगों पर। जनक ने पूछा- ‘हे बालक! सभी लोगों की हंसी समझ आती है, लेकिन तुम क्यों हंस रहे हो?
अष्टावक्र बोले- महाराज आपकी सभा चर्मकार की सभा है, जो मेरी चमड़ी की विकृति पर हंस रहे हैं, इनमें कोई विद्वान नहीं! ये चमड़े के पारखी हैं। मंदिर के टेढ़े होने से आकाश टेढ़ा नहीं होता है और घड़े के फूटे होने से आकाश नहीं फूटता है। इसके बाद शास्त्रार्थ में बंदी की हार हुई। अष्टावक्र ने बंदी को जल में डुबोने का आग्रह किया। बंदी बोला मैं वरुण-पुत्र हूं और सब हारे ब्राह्मणों को पिता से पास भेज देता हूं। मैं उनको वापस बुला लेता हूं। सभी हारे हुए ब्राह्मण वापस आ गए, उनमें अष्टावक्र के पिता कहोड़ भी थे। इसके बाद राजा जनक ने अष्टावक्र को अपना गुरु बना लिया और उनके आत्मज्ञान प्राप्त किया। राजा जनक और अष्टावक्र के इस संवाद को अष्टावक्र गीता के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हुई अष्टावक्र गीता एक महत्वपूर्ण वैदिक ग्रंथ है। जिसको संपूर्ण हिंदू समाज आदि अनादि काल से पड़ता है और अपना जीवन धन्य करता है मोक्ष को प्राप्त करता है
जैसे आभूषण के पुराने या कम सुंदर होने से सोने की कीमत कम नहीं हो जाती, वैसे शरीर की कुरूपता से आत्म तत्व कम नहीं होता। कभी किसी व्यक्ति के शरीर की सुंदरता को देखकर प्रभावित या किसी की कुरूपता को देखता घृणा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि शरीर तो हाड़-मांस से बना है। देखना है तो उसका ज्ञान, प्रेम और दिव्यता देखो, क्योंकि आत्मा करके सब समान हैं।