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मंदसौर से छीनी जा रही है एक और बड़ी जन सौगात,उज्जैन से कम दूरी होने पर भी रतलाम को बनाया जा रहा है,संभाग, यह है घोर अन्याय

प्रसंगवश

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मंदसौर से छीनी जा रही है एक और बड़ी जन सौगात,उज्जैन से कम दूरी होने पर भी रतलाम को बनाया जा रहा है,संभाग, यह है घोर अन्याय

(ब्रजेश जोशी)

मंदसौर। हमारे मंदसौर क्षेत्र के लिए एक नया मसला सामने आ रहा है। बड़े-बड़े लोग जो जनप्रतिनिधि के पदों पर बैठे हैं या ब्यूरोक्रेसी की ऊंची कुर्सियों पर अफसर बने हुए हैं वे केवल अपनी सुविधा देखते हैं उन्हें जनता की सुविधा से कोई सरोकार नहीं होता..रतलाम इंदौर के ज्यादा नजदीक है.. रतलाम रेल्वे का बड़ा जंक्शन है रेल सुविधाओं की कनेक्टिविटी स्वाभाविक रूप से ज्यादा है तो इन बड़े-बड़े लोगों को होने वाली छोटी-छोटी परेशानियां ना हो इसके लिए अगर मंदसौर का हक

छीनना भी पड़े तो छीनो और बना दो रतलाम को संभाग।

यह मंदसौर नीमच जिले का दुर्भाग्य रहा है कि इस क्षेत्र को मिलने वाली हर वांछित सुविधा या तो रोक जाती है या छीन ली जाती है। और कहीं और उन सेवाओं को और सुविधाओं को शिफ्ट कर दिया जाता है। बगैर संघर्ष के हमें कुछ नहीं मिलता। और हमारे मौन रहने पर हमारे हक भी छीन लिया जाते हैं। यही हो रहा है..! यदि रतलाम को संभाग बना दिया गया तो तय बात है की मंदसौर का भविष्य गर्त में चला जाएगा। मंदसौर नीमच जिले के दूरदराज के कस्बे और गांव के लोगों को चाहे संभागीय स्तर का कार्य करने के लिए कितनी ही दूरी का सामना क्यों न करना पड़े

वे करते रहे बड़े लोंगों को इससे क्या। क्योंकि व्यवस्थाएं तो बड़े लोगों पर ही केंद्रित रहती है। आम जनों से व्यवस्थाओं का क्या लेना देना। मंदसौर को मिल सकने वाली एक बड़ी सौगात से वंचित किया जा रहा है। सन 2017 में मंदसौर नीमच जिलों के सभी विधायकों ने मंदसौर को संभाग का दर्जा दिए जाने की मांग की है बावजूद इसके खबर है कि रतलाम को संभाग बनाने का वहां के प्रभारी मंत्री द्वारा प्रस्ताव पारित कराया गया है। मंदसौर क्षेत्र के लिए ये फिर से परीक्षा की घड़ी है.. हमें अपनी प्रत्येक सौगातो और सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ता है। 1998 में जब जिले के तीन टुकड़े करने पर सरकार आमादा हो गई थी नीमच को तो जिला बनना ही था गरोठ को भी जिला बनाया जा रहा था।मंदसौर के पास केवल दो तहसीलें रह जाती।ऐसे में तत्कालीन जनप्रतिनिधियों और सभी दलों के राजनेता अपने-अपने घरों में बैठ गए कोई भी मैदान में इस बात को लेकर नहीं आया कि मंदसौर के तीन टुकड़े ना होने दो ऐसे में मंदसौर के पत्रकार और यहां के सामाजिक कार्यकर्ता सक्रिय हुए और पत्रकारों के नेतृत्व में एक जिला बचाओ आंदोलन हुआ उसका परिणाम भी आया। गरोठ

अभी मंदसौर जिले में ही है। चूंकि गरोठ क्षेत्र के लोग गरोठ को भी जिला बनाने की लगातार मांग कर रहे हैं और वहां का स्थानीय राजनीतिक मुद्दा भी है तो देर सवेर यदि गरोठ भी जिला बन जाता है और संभाग भी मंदसौर की बाजार रतलाम को बना दिया जाता है तो फिर हम सोचे इस मंदसौर के पास क्या रह जाएगा..! महज मंदसौर और मल्हारगढ़ दो तहसीलों का यह एक जिला रहेगा।

तो मंदसौर के साथ फिर से घोर अन्याय करने की साजिश रची जा रही है।ऐसे में सबसे पहला कर्तव्य तो यहां के जनप्रतिनिधियों और राजनीतिक दलों का है लेकिन लगता है पूर्व की तरह ऐसी कोई पहल फिलहाल यहां होती नहीं दिखती। तो फिर से समय आ गया है कि मंदसौर के सामाजिक संगठन, समाजसेवी संस्थाएं मीडिया और आमजन भी मैदान में आए और किसी भी तरह रतलाम को नहीं मंदसौर को संभाग का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष करें। संभाग बनना यह मंदसौर का नेसार्गिक अधिकार है। जो उसे मिलना ही चाहिए। और यदि मंदसौर के लोगों को इस अधिकार से वंचित किया जाता है रतलाम को संभाग बना दिया जाता है तो यहां के लोगों के हितों पर बहुत बड़ा कुठाराघात होगा ।और यहां की जनता इस बात को कतई बर्दाश्त नहीं कर पाएगी।

मंदसौर जिले को गर्त में डालने के लिए तमाम तरह की अनुकूलताएं मंदसौर के लिए होने के बावजूद भी रतलाम को संभाग बनाए जाने का प्रस्ताव पारित किया गया जबकि स्वाभाविक दावा संभाग के लिए मंदसौर का है। यह बात सब अच्छी तरह जानते हैं भले ही ना माने। भौगोलिक दृष्टि से वर्तमान में उज्जैन संभाग है तो रतलाम और उज्जैन की दूरी कम है। मंदसौर नीमच जिले के नगरों और गांवों से रतलाम की उसी अनुपात में दूरी है।

तो मंदसौर की जनता वक्त आ गया है एक और बड़े और कड़े संघर्ष का..!नगर के कई बुद्धिजीवी नागरिकों और परिस्थितियों को समझने वाले लोगों का कहना है कि यदि संभाग का दर्जा रतलाम को मिल गया तो मंदसौर एक बार फिर कई सालों पीछे धकेल दिया जाएगा।

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