आलेख/ विचारमंदसौरमध्यप्रदेश

भारत के राजनीतिक पटल पर गतिमान राष्ट्रभाषा

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भारत के राजनीतिक पटल पर गतिमान राष्ट्रभाषा

-डॉ. गुणमाला खिमेसरा
सदस्य – राजभाषा सलाहकार समिति, भारत सरकार, दिल्ली

गूंजी हिन्दी विश्व में, स्वप्न हुआ साकार,
राष्ट्रसंघ के मंच से, हिन्दी का जयकार।
हिन्दी का जयकार, हिन्द हिन्दी में बोला,
देख स्वभाषा-प्रेम, विश्व अचरज में डोला।
-श्री अटल बिहारी वाजपेयी पूर्व प्रधान मंत्री

प्रत्येक समृद्धशाली राष्ट्र की कोई एक ही भाषा राष्ट्रभाषा के नाम से जानी जाती है क्योंकि वह भाषा उस राष्ट्र की प्रतीक होती है उसी को उस राष्ट्र के नाम से जाना जाता है। हिन्दी भाषा हमारे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर रही है। हिन्दी हमारे देश की राजभाषा ही नहीं, हमारी अस्मिता और पहचान की प्रतीक भी है। इन 77 वर्षों में जितना हिन्दी का विकास हुआ, उतना विश्व की किसी भी भाषा का नहीं। हिन्दी हमारे विकास का दस्तावेज है, दुनिया का ऐसा कोई विषय नहीं जो हिन्दी भाषा में उपलब्ध न हो। भारत की भारती यानी हिन्दी भारत के राजनीतिक पटल पर अमिट छाप छोड़ चुकी है। हजारों बाधाओं के बाद भी हिन्दी प्रगति की ओर है।
हिन्दी की प्रांरभिक कसौटियाँ –
अमीर खुसरो का एक वाक्य याद आ रहा है – बड़ी कठिन डगर है पनघट की। हिन्दी की लड़ाई परतंत्र भारत में तो लड़ी गई लेकिन स्वतंत्र भारत में राजभाषा अधिनियम पास होने के बाद भी लंबे समय से भाषा के मामले में चूक होती रही है। जिस देश में जो भाषा हो उस देश का न्याय उस देश का कानून और राजकाज उसी भाषा में होना चाहिए। हमारी स्थिति यह है कि हम न तो हमारी मातृभाषा का सम्मान करते हैं न विदेशी भाषा का। जब स्वतंत्र भारत में हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया तो भारत के कुछ क्षेत्रों में इसका विरोध हुआ खास तौर पर दक्षिण भारतीयों ने इसका जबर्दस्त विरोध किया। उन्होंने इसे केवल उत्तरी भारत की भाषा माना। प्रतिक्रियाओं का ऐसा दौर चला कि भाषा के आधार पर ही राज्यों का अस्तित्व-निर्माण एवं पुनर्गठन की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। बंगाल में भी विद्रोह की मशाल जली भाषा का इस्तेमाल राजनीतिक हथियार के रूप में होने लगा। हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिस्थापित करते ही भारतीय राजनीति में खलबली मच गई। महाराष्ट्र में विद्रोह के स्वर उठने लगे जबकि महाराष्ट्र के सदन में 40 प्रतिशत सदस्य हिन्दी भाषी थे। असम के राजनीतिक पटल पर दृष्टिपात करें तो हर आंदोलन के पीछे भाषा की राजनीति सामने आयी।
भाषा संबंधी विवाद ने भारत की राष्ट्रीय एकता को दुष्प्रभावित किया। भाषा के आधार पर राज्यों का गठन अपने आप में घातक था लेकिन देश की एकता की खातिर तेलुगू भाषी आंदोलनकारियों की मांग मानते हुए सन् 1952 में पृथक तेलुगू भाषी राज्य का अस्तित्व मान लिया। इसके पीछे मूल कारण यह था कि एक तेलुगू नेता पोट्टी श्री रामुलू ने पृथक राज्य निर्माण के लिए आमरण अनशन किया था जिसके परिणामस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई थी। इस घटना ने इतना तूल पकड़ लिया कि भाषा आधारित राज्य के निर्माण हेतु मजबूर होना पड़ा। इन्हीं विवादों के चलते बंबई को गुजरात और महाराष्ट्र दो भागों में विभाजित किया। सन् 1966 में भाषा के आधार पर पंजाब से पृथक राज्य हरियाणा बना। मतदान व्यवहार भी भाषा के आधार पर किया जाता है मतदाता भी उसी उम्मीदवार को अपना वोट देते हैं जो उनकी भाषा से संबंधित हो। और इन सभी विरोधों के चलते भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति 2020 लागू की है जिसमें प्राथमिक शिक्षा का माध्यम स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा होगी।
वर्तमान भारत की राजनीति एवं गतिमान राष्ट्रभाषा –
विश्व का सबसे बड़ा जनतांत्रिक राज्य भारत बहुभाषा भाषी राज्य है। आज यहाँ लगभग 1653 भाषाऐं बोली जाती है। हिन्दी भाषा देश की आत्मा को अभिव्यक्त करती आ रही है हालांकि राजनीतिक पटल पर भाषागत हितों के टकराव के बादल उमड़ते घुमड़ते रहते हैं लेकिन राष्ट्रीय एकता के आधार पर भारत इन चुनौतियों का सामना कर वैश्विक महाशक्ति बनने को तैयार है। भारत का मूल स्वरूप भी राजनीतिक नहीं सांस्कृतिक है। वैश्विक स्तर पर अब हिन्दी को नई पहचान मिली है। हिन्दी तीव्रगति से विकासमान भारत की भाषा है जो खेतों खलिहानों से, लोकजीवन की जड़ों से निरन्तर उठती विदेशों में अपने परचम लहरा रही है। संयुक्त राष्ट्रसंघ महासभा के कामकाज की भाषा में हिन्दी को अब मान्यता मिल चुकी है। पिछले चार पांच दशकों में विश्वस्तर का साहित्य रचा गया। हिन्दी की एक और विशेषता यह है कि यह जितने राष्ट्रों और जनता द्वारा बोली जाती है, समझी जाती है उतनी संयुक्त राष्ट्र संघ की छः भाषाएं (चीनी, अंग्रेजी, अरबी, स्पेनिश, फ्रेंच और रूसी) नहीं बोली जाती भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसकी पाँच भाषाएँ विश्व की प्रमुख भाषाओं में शामिल है ‘वसुधैव कुटुम्बकम्‘ का भाव हिन्दी में मौजूद है। भौगोलिक आधार पर हिन्दी विश्व भाषा है क्योंकि इसे बोलने और समझने वाले सारे संसार में फैले है। जनतांत्रिक आधार पर हिन्दी विश्व भाषा है क्योंकि उसके बोलने, समझने वाले की संख्या संसार में तीसरे स्थान पर हैं। हिन्दी स्वयं में अपने भीतर एक अन्तर्राष्ट्रीय जगत को छिपाए हुए है। विश्व पटल पर हिन्दी भौगोलिक सीमाओं को पार करके सूचना टेक्नोलॉजी के विभिन्न जनसंचार माध्यमों में घुलने लगी है।
इस प्रकार सरकार, सहकार और सरोकार से हिन्दी का विकास होता गया। यू.एन.जी. में हिन्दी भाषा के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने आठ लाख अमेरिकी डालर का योगदान भी दिया। सच तो यह है कि हिन्दी भारत का ‘हाईवे‘ है। आज डिजिटल विश्व में हिन्दी सबसे तीव्र गति से बढ़ने वाली भाषा बन गई है। गूगल के सर्वेक्षण भी यह सिद्ध करते हैं कि इंटरनेट पर हिन्दी में प्रस्तुत होने वाली सामग्री में पिछले पाँच वर्षों में 94 की दर से बढ़ोतरी हुई है। आज भारत में 82 प्रतिशत लोग हिन्दी समझते हैं। इस समय जो तकनीकी सुविधा अंग्रेजी में उपलब्ध है वह सब हिन्दी में भी उपलब्ध है। फेसबुक, ट्विटर पर हिन्दी सबसे अधिक लोकप्रिय है क्योंकि हिन्दी में अभिव्यक्ति की सरलता है भारत में लगभग 75 करोड़ लोगों के पास स्मार्ट फोन है और इनमें से 63 करोड़ से अधिक लोग हिन्दी का प्रयोग करते हैं। नेटफ्लिक्स में तो अब पूरी तरह से आर्डर उपलब्ध है। अभी अभी संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अपना ट्विटर हैंडल हिन्दी में प्रारंभ कर दिया है। उसकी वेबसाइट हिन्दी में उपलब्ध है। आज वैश्वीकरण के मुक्त बाजार व्यवस्था में हिन्दी विदेशों में निरन्तर आगे बढ़ रही है। भारतीय उपभोक्ताओं को आकर्षित करने हेतु हिन्दी सीखी जा रही है, हिन्दी विश्व की जरूरत बन गई है क्योंकि वह रोजी-रोटी से जुड़ गई है। राष्ट्रभाषा की ये भी समृद्धि और आत्म निर्भरता है कि हमने हर क्षेत्र में निर्यात को बढ़ावा दिया। आज हमें आवश्यकता है दृढ़ संकल्प की जिससे हमारी भाषा फल फूल सके। हिन्दी दिवस के पुनीत अवसर पर हम सब भारतीयों का कर्तव्य है कि हम मनसा वाचा और कर्मणा से हिन्दी को हृदयंगम करें। अस्तु।

भारत के हर नागरिक को बहुत बहुत बधाई।
वर्तमान पता –
8, ज्ञानोदय सीनियर एमआयजी,
महावीर मार्ग, संजीत रोड़, जनता कॉलोनी,
मंदसौर (म.प्र.) पिन नं. – 458001

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