शीतला सप्तमी पर की माँ शीतला की पूजा

शीतला सप्तमी पर की माँ शीतला की पूजा

डग, (संजय अग्रवाल) झालावाड़ जिले के डग नगर में शीतला सप्तमी पर महिलाओं ने शीतला माता की पूजा अर्चना कर सुख समृद्धि की कामना की एवं ठण्डे भोजन का भोग लगाया।
डग नगर में शुक्रवार को शीतला सप्तमी पर्व मनाया गया जिसके तहत महिलाओं ने देर रात को पुए, पकोड़ी, ढोकला आदि पकवान बनाकर डगेश्वरी माता मंदिर में स्थित शीतला माता की विशेष पूजा अर्चना कर भोग लगाया इस दौरान तड़के से ही महिलाओं ने पूजा अर्चना शुरू की जो दिन भर चली ।
पौराणिक मान्यता के अनुसार माता शीतला की उत्पत्ति ब्रह्मा से हुई थी देवलोक से पृथ्वीलोक पर माता शीतला अपने साथ भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर को लेकर आई थी तब उनके हाथ मे दाल के दाने भी थे उस समय के राजा विराट ने माता शीतला को अपने राज्य में रहने का स्थान नही दिया तो माता क्रोधित हो गई एवं उनके क्रोध की ज्वाला से राजा की प्रजा को लाल लाल दाने निकल आए और लोग गर्मी से मरने लगे जिसपर राजा ने माता के क्रोध को शांत करने के लिए उनपर ठंडा दूध और लस्सी चढ़ाई तभी से हर साल आज के दिन अपने परिवार को ठंडे गर्म से बचाने के लिए यह पूजा की जाती है तथा ठण्डा भोजन करते है ।
उल्लेखनीय हैं कि शीतला माता की पूजा केवल धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि उनके द्वारा धारण की गई वस्तुओं के माध्यम से हमें जीवन में कई महत्वपूर्ण संदेश मिलते हैं। मां शीतला गधे की सवारी करती है, उनके एक हाथ में झाडू दूसरे हाथ में कलश है, जो एक विशेष संदेश देते हैं। मां शीतला केवल चेचक रोग ही नहीं पीतज्वर, विस्फोटक, फोड़े, घुटने, नेत्रों के सभी रोग, फुंसियों के चिह्न तथा जनित दोष जैसे रोग हरती है। शीतला माता के एक हाथ में झाडू है। झाडू से जुड़ी मान्यता है कि हम सफाई के प्रति जागरूक रहे। सभी लोगों को सफाई के प्रति सजग रहना चाहिए। आसपास सफाई होने से बीमारियां दूर रहती हैं। दूसरे हाथ में कलश से जुड़ी मान्यता है कि कलश का ठंडा पानी गर्मी में लाभप्रद होता है। माता के कलश में शीतल स्वास्थ्यवर्धक और रोगाणु नाशक जल होता है। कलश में सभी 33 कोटि देवी-देवताओं का वास रहता है। शीतला माता की सवारी गधा है। गधा मेहनती होता है। हम भी मेहनत से जी नहीं चुराए। माता के संग ज्वारसुत दैत्य, हैजकी देवी, चौंसठ रोग, त्वचा रोग के देवता, रक्तवती देवी विराजमान होती हैं