बरसात की लंबी खेंच से किसानों के चेहरे मुरझाए राखी का त्योहार भी पड़ा फीका

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दशरथ परमार
महुवा- कोई भी त्योहार या उत्सव का आनंद तब आता जब बाजारों में रौनक रहती हैं सबके चेहरों पर मुस्कान रहती है पर इस बार अन्नदाता के चेहरे मुरझाए हुए हैं अन्नदाता के साथ तो भगवान भी नहीं है फसलें मुरझाने लगी और सूखने की कगार पर खड़ी है और कही से कही तक वर्षा होने के आसार नहीं दिखाई दे रहे है जिससे अन्नदाता परेशान है अन्नदाता क्या करे उसके समझ में कुछ नही आ रहा है । उसकी आंखों में सिवाय आंसुओ के कुछ नही बचा ना भगवान सुन रहा ना सरकार सब उससे नाराज है ऐसे में वो त्योहार या उत्सव क्या मनाए अन्नदाता इस बार कोई सटीक निर्णय लेने के लिए आमादा हैं इसलिए वो कुछ भी कहने को तैयार नहीं है ऐसा ना हो की अन्नदाता सभी सर्वे और प्रचार प्रसार का बोरिया बिस्तर बांधकर गंगा जी में बहा दे अभी कुछ भी कहना गलत होगा क्योंकि अन्नदाता खामोश है गली गली में तो वो चिल्ला रहे है जिसको अपनी सरकार बनने पर अपना फायदा नजर आ रहा है वो लोग ही लोग सर्वे कर रहे है और करा रहे है। आखरी सर्वे अन्नदाता करेगा जो ऐसा ना हो दरी पर बैठने वाले को कुर्सी दे दे और कुर्सी वाले को नीचे बैठने पर मजबूर कर दे
अन्नदाता ने सोच लिया है अबकी बार जो अन्नदाता के साथ रहेगा वही सरकार में रहेगा क्योंकि अन्नदाता ने धरना प्रदर्शन या रोड़ जाम करना छोड़ दिया अब फैसला किया जाएगा और सटीक निर्णय लिया जाएगा बार्डर पर रह रहे जवानों की तरह