पीपल के पत्ते पर चंदन से राम राम लिखकर हनुमान जी को माला पहनाने व तुलसी चढ़ाने से संकट टल जाते है- डॉ कृष्णानंद जी महाराज

दलावदा/ सीतामऊ। भगवान राम कैसे हैं जो सबके रोम रोम में समाएं हुए हैं राम करुणा निधान है राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने, राम वे है जो सबमें रमने वाले हैं राम माता जानकी के पति हैं राम मनोहर सुंदर है। और राम नाम एक बार लेने से भगवान नारायण विष्णु के हजार नामों के बराबर फल मिलता है। भोले बाबा ने माता पार्वती को राम नाम कि महिमा बताते हुए कहा कि पार्वति! राम राम कहो। एक बार राम कहने से विष्णुसहस्रनाम का सम्पूर्ण फल मिल जाता है। क्योंकि श्रीराम नाम ही विष्णु सहस्रनाम के तुल्य है। इस प्रकार शिवजी के मुख से राम इस दो अक्षर के नाम का विष्णुसहस्रनाम के समान सुनकर राम इस द्व्यक्षर नाम का जप करके पार्वती जी ने प्रसन्न हुई।सहस नाम सम सुनि शिव बानी। जपि जेई पिय संग भवानी॥उक्त उद्गार संत डॉ कृष्णन्द जी महाराज ने जेतपुरा दीपाखेड़ा में तीन दिवसीय श्री राम हनुमान कथा का ज्ञाना अमृतपान करते हुवे कही
संत श्री ने भगवान श्री राम कि महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि महाराज तुलसीदास जी ने रामायण अरण्य काण्ड में लिखा है कि जा पर कृपा राम की होई ता पर कृपा करे हर कोई” इसका अर्थ है कि जिस पर प्रभु कि कृपा हो जाती है। इसको हर उसकी मदद करने आ जाता है उस पर कृपा बरसने लगती है। हम किसी के पीछे पड़े कि वो हमारी मदद कर दें पर ऐसा नहीं होता है। जब तक प्रभु नारायण लक्ष्मी राजी नहीं होती है तब तक कोई सहयोग के लिए आता है। इसलिए राम जी याद करना चाहिए।
संत श्री ने हनुमान जी कि कथा का ज्ञानामृत पान कराते हुए कहा कि भगवान श्री राम के अनन्य भक्त हनुमान जी महाराज है। उनके बराबर आज तक कोई भक्त नहीं हुआ है। हनुमान जी महाराज ने अपने स्वामी प्रभु राम कि सेवा में सदैव तत्पर रहते है माता जानकी से भी बढ़कर आपने राम कि सेवा में लीन रहें। एक बार माता जानकी ने हनुमान जी को अपने स्वामी राम कि सेवा से प्रसन्न होकर अच्छे-अच्छे पकवान बनाकर खिलाने के लिए आमंत्रित किया। और हनुमान जी को बिठा कर विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को परोसा गया। स्वयं माता जानकी ने परोसगारी कि जो भोजन बनाया वह खतम होने लगा पर हनुमान जी कि भुख पुरी नहीं हुई माता जानकी अपने लाल के भोजन से तृप्ति नहीं होने पर परेशान हो गई। सीता जी ने अपनी व्यथा लक्ष्मण जी को सुनाई।माता सीता की बात सुन लक्ष्मण ने कहा, ‘हनुमान रुद्र के अवतार हैं।इनको कौन तृप्त कर सकता है।’ तब लक्ष्मण जी ने तुलसी के पत्ते पर चंदन से राम लिख दिया और उसे हनुमान जी के भोजन पात्र में डाल दिया। तुलसी मुंह में आते ही हनुमान जी की भूख शांत हो गई। भगवान हनुमान जी साक्षात शिव शंकर है हनुमान चालीसा में लिखा है कि शंकर स्वयं में केशरी नंदन है इसलिए हनुमान जी महाराज कि पुजा करने से शंकर भोले बाबा भी प्रसन्न हो जाते हैं।
संत श्री ने कहा कि हनुमान जी महाराज को भाव पूर्वक मंगलवार के दिन पीपल के पत्ते पर चंदन से राम राम लिखकर मौली (लच्छे) से माला बनाकर हनुमान जी को पहनाने और तुलसी पत्र अर्पित करने से संकट विपदाएं टल जाती है। बिगड़े काम बन जाते हैं।
एक माता जी द्वारा हनुमान चालीसा को लेकर पढ़ने को लेकर प्रश्न किया तो संत श्री ने कहा कि हनुमान चालीसा में लिखा है कि जो यह पढ़े हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा। इस अर्थ है कि कोई भी हनुमान चालीसा पाठ कर सकता है। जो भी पाठ करेगा उसे लाभ सफलता निश्चित मिलती है। संत श्री ने कहा कि माताओं को हनुमान जी कि विग्रह को स्पर्श नहीं करना चाहिए। हनुमान जी ब्रह्मचार्य है। इसलिए केवल उनकी भक्ति करना चाहिए। उनके विग्रह सिंदुर चोले को जो माताएं बहनें स्पर्श करती है उन्हें दोष लगता है। संत श्री ने कहा कि बाल मुख सिंदुरी हनुमान सबने देखें है पर तुलसी दास जी ने हनुमान जी के पांच मुखों का वर्णन किया है। हनुमान जी के पांच मुखों वाली तस्वीर चित्र घर के बाहर लगाने से सारे वास्तु दोष मिट जाते हैं। इस प्रकार संत श्री भगवान श्री राम एवं हनुमान जी कि कथा का उपस्थित भक्तों को विस्तार से ज्ञानामृत पान कराया।
कथा के तीसरे दिवस क्षेत्र विधायक श्री हरदीप सिंह डंग मंडल अध्यक्ष लाल सिंह देवड़ा नगर परिषद अध्यक्ष श्री मनोज शुक्ला महामंत्री जितेंद्र बामनिया मीडिया प्रभारी रोहित गुप्ता सहित बड़ी संख्या में मातृशक्ति भक्तजनों ने संत डॉ कृष्णानंद जी महाराज एवं स्वामी श्री मधुसूदन जी महाराज के दर्शन आशीर्वाद प्राप्त किया।
ग्राम दीपाखेड़ा के जैतपुरा बालाजी में तीन दिवसीय श्री राम हनुमान कथा का उपस्थित भक्तों द्वारा ज्ञान अमृत पान के साथ ही प्रथम दिन गंगा माता मंदिर से भव्य कलश यात्रा तथा यज्ञ कर पंडित बलदेव प्रसाद जी शास्त्री के मार्गदर्शन में आचार्य पंडितों द्वारा दुसरे 16 अप्रैल को देव पूजन और हवन तथा तीसरे दिन 17 अप्रैल बुधवार को पूर्णाहुति एवं भंडारा प्रसादी के साथ कथा का विश्राम समापन हुआ।