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मालवा के लिए मालवी गीतों की सुरीली पहचान है श्रीमती पुखराज पांडे – बटवाल

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अखिल भारतीय साहित्य परिषद की मालवी काव्य गोष्ठी सम्पन्न
सावनी बौछार सो शीतल तमारो मन, स्नेह का बिरवा  लगाया मन के उपवन-मालवी कोकिला पुखराज पांडे

मन्दसौर। अखिल भारतीय साहित्य परिषद मंदसौर की मालवी कवि गोष्ठी मालवी कोकिला के नाम से प्रसिद्ध श्रीमती पुखराज पांडे के मुख्य आतिथ्य,  वरिष्ठ पत्रकार घनश्याम बटवाल की अध्यक्षता तथा प्रेस क्लब अध्यक्ष बृजेश जोशी के विशेष आतिथ्य,  वरिष्ठ साहित्यकार देवेंद्र जोशी, वरिष्ठ कवि गोपाल बैरागी, उभरते कवि नंदकिशोर राठौर, व्यंगकार हरीश दवे, काव्य प्रेमी अजय डांगी एवं चंदा डांगी, सुरीले एंकर नरेंद्र त्रिवेदी, माता पुखराज पांडे की विरासत को गाती श्रीमती यशिता दवे तथा दिलीप जोशी जी के सानिध्य में संपन्न हुई इस अवसर पर बोलते हुए श्री बटवाल ने कहा कि यह हमारा परम सौभाग्य है कि पुखराज पांडे को आकाशवाणी पर मालवा की कोकिला के रूप में सुनते आए हैं उनकी उपस्थिति में मालवी काव्य गोष्ठी कर रहे हैं ‘‘श्रीमती पांडे मालवा के लिए मालवीय गीतों की सुरीली पहचान है’’। इस अवसर पर आपने अपने मनोभावों के लिए कविता ‘‘कभी खट्टा-कभी मीठा इमली सामान कभी गुनगुनाता कभी उदास मन’’ सुनाकर सबका मन बस में कर लिया।
ब्रजेश जोशी ने कहा सकारात्मकता के छोटे-छोटे प्रयास नकारात्मकता को समूल नष्ट करते हैं इन कार्यों में आज के समय में मीडिया का दायित्व अधिक बढ़ गया है कि वह इन प्रयासों को  प्राथमिकता से प्रकाशित करें। साहित्यकार देवेश्वर जोशी ने लघु कथानक ‘‘अस्पताल की बिजली’’ पर व्यंग सुनाया तो दिलीप जोशी ने ‘‘पत्तल पर झूठा छोड़ना’’ सामाजिक बुराई पर व्यंग पड़ा।
नंदकिशोर राठौड़ ने कोरोना की दूसरी लहर की भयावहता को ‘‘यह कैसा अंजान कहर है मौत के साए में शहर है’’ सुना कर कोरोना से सतर्क किया। अजय डांगी ने ‘‘मुझे अपनी बात कहने का हक है उसमें भी कोई क्या शक है‘‘ सुना कर अपनी बात का दम दिखाया। चंदा डांगी ने पुस्तकों पर कविता ‘‘सुख दुख की साथी होती है किताबे’’ सुनाई।
मालवा कोकीला पुखराज पांडे ने मालवी गीत ‘‘सावनी बौछार सी शीतल तमारो मन स्नेह का बिरवा लगाया मन के उपवन‘‘ सुना कर माहौल में मालवी मिठास घोली। यशीता दवे ने श्रीमती पांडे का गीत ‘‘बांची ने कई करूं लिखयो है सुख मारे तकदीर में’’ मालवी गीत सुनाया।
ंनरेंद्र त्रिवेदी ने ‘‘आदमी आदमी को सुहाता नहीं, आदमी से डर रहा है आदमी‘‘ सुना कर मानवता की घटती विषय वस्तु को गीत में गाया। गोपाल बैरागी ने वरिष्ठ नागरिकों के जीवन की पीड़ा पर गीत ‘‘अपने घर का मेहमान हो गया हूं गुजरती हुई सदी का सामान हो गया हूं
‘‘ सुनाया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए नरेंद्र भावसार ने मालवी हास्य ‘‘मूं एकलो कई कई करूं, ने कठे कठे मरू‘‘ सुनाया। कार्यक्रम के आरंभ में अतिथियों ने सरस्वती प्रतिमा पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलित कियां सरस्वती वंदना नंदकिशोर राठौर ने प्रस्तुत की। अंत में आभार हरीश दवे ने माना।

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