प्रकृति के बस में रहता है वह जीव और प्रकृति को जो वष में रखता है वह ईष्वर – पं.जयप्रकाष षास्त्री

**************************************
क्षेत्र की पहली ऐतिहासिक सप्तऋषि द्वारा सप्तदिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा दिव्य सत्संग का विश्राम हुआ
नीमच। भगवान के साथ रूक्मिणी, जाम्बवती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रवृन्दा, नाग्नजिती, भद्रा, लक्ष्मणा इन आठ पटरानियों के साथ पृथक पृथक विवाह हुआ। इसके पष्चात् सोलह हजार एक सौ राजकुमारियों को भोमासुर राक्षस की कैद से छुडवाकर उनको भी समाजहित में सभी का वरण किया। यह सोलह हजार एक सौ रानियां पटरानियां जो थीं, उसमें सोलह हजार रानियां उपासना कांड के सोलह हजार मंत्र थे और सौ रानियां जो उपनिषद हैं, वेदान्त जिसमें कृष्णभक्ति का प्रतिपादन किया जाता है, वे सौ प्रकार के उपनिषद ही कृष्ण की सौ पत्नी हैं और जो आठ पटरानियां हैं, वे प्रकृति का रूप हैं जो कि भूमि, जल, अग्नि, वायु, आकाष, मन, बुद्धि और अहंकार का रूप है। जीव और ईष्वर में अंतर है। जो प्रकृति के बस में रहता है वह जीव है। प्रकृति को जो वष में रखता है वह ईष्वर है। उक्त आषय के उद्गार टीआईटी कॉलोनी नीमच में पहली बार सप्तऋषि रूप सप्त ब्राम्हणों द्वारा टीआईटी महिला मण्डल के तत्वावधान में सप्तदिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा दिव्य सत्संग के विश्राम दिवस पर पं.जयप्रकाष षास्त्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को कथा का अमृतपान कराते हुए व्यक्त किए।
पं.षास्त्री ने कहा कि जो व्यक्ति उन्नति करता है, उसके षत्रु भी अधिक होते हैं। लेकिन समझदार आदमी वही है जो इन सभी परिस्थितियों में किसी से घबराता नहीं है। प्रत्येक परिस्थिति में एकरस रहने की जो आदत डाल लेता है, और भगवान को याद करके अपना कर्म करता है, तो ठाकुरजी भी उसका साथ बराबर देते हैं। षास्त्रीजी ने कृष्ण रूक्मिणी संवाद, कृष्ण के पुत्र पौत्र प्रद्युम्न एवं अनिरूद्ध के विवाह का सजीव विवरण दिया। षास्त्रीजी ने बताया कि परिवार में कलेषों के निवारण के लिए अगर सभी पारिवारिकजन दो वक्त का भोजन और दो वक्त का भजन साथ में करें तो घर के कलेषों की समस्या का समाधान हो सकता है। भगवान कृष्ण यह भी कहते हैं कि ब्राम्हणों का धन जो उसकी इच्छा के विरूद्ध छीन लेता है, या उसकी इच्छा के विरूद्ध जबर्दस्ती उपयोग करता है, तो इससे ब्राम्हण की आंख से जितने आंसू गिरेंगे, जितने जमीन के कण गीले होंगे, उतने वर्ष उस व्यक्ति को नरक वास करना पडता है। इसके साथ ही सुदामा चरित्र का बडा ही मार्मिक प्रसंग सुनाकर षास्त्रीजी ने सभी श्रोताओं को अश्रु बहाने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद परीक्षित मोक्ष की कथा के साथ कथा का विश्राम हुआ।
सप्तऋषि रूप सप्त ब्राम्हणों द्वारा यह अभिनव प्रयोग रूप में श्रीमद् भागवत कथा दिव्य सत्संग का आयोजन 14 मार्च से 20 मार्च तक किया। सातों दिनों में अलग अलग ऋषि रूप ब्राम्हणों पं.दुर्गाषंकर नागदा, पं.दिलखुष नागदा, पं.राजेन्द्र पुरोहित, पं.गोविन्द मिश्रा, पं. नरेन्द्र षास्त्री, पं.दषरथ षास्त्री, पं.जयप्रकाष षास्त्री द्वारा कथामृत का रसपान कराया गया।
कथा विश्राम अवसर पर छप्पन भोग का आयोजन भी किया गया, जिसमें बडी संख्या में श्रद्धालुजन उपस्थित थे। महिला मण्डल की तुलसी फुलवानी, रेणु अग्रवाल, कविता फुलवानी, गोदावरी लालवानी आदि महिलाओं ने सप्तऋषि रूप सात ब्राम्हणों का उपरणा ओढाकर आषीर्वाद लिया। कथा में भजन गायकों पं.लक्ष्मण षर्मा एवं पं.गौरव पारीक का भी सम्मान किया। क्षेत्रवासियों ने इस नव प्रयोग को प्रषंसनीय बताया और ऐसे आयोजन पुनः क्षेत्र में हो, ऐसे विचार व्यक्त किए। कॉलोनीवासियों ने सप्तऋषि रूप सप्त ब्राम्हणों के श्रीमुख से श्रीमद भागवत का भाव विहल होकर श्रवण किया।