आलेख/ विचारनागदामध्यप्रदेश

पराजय से प्रतिशोध की पिपासाः पशुपतिनाथ की शरण नागदा के पूर्व एम.एल.ए. मंदसौर के संग्राम में 

 

 दिलीपसिंह की कश्ती को गुर्जर बिरादरी से आस?

टिप्पणी -कैलाश सनोलिया

नागदा। पराजय से प्रतिशोध की पिपासाः अब पशुपति नाथ से प्रीत और उनकी शरण। इस शीर्षक का राजनैतिक विश्लेषण किया जाए तो इस सियासती कहानी के मुख्य पात्र उज्जैन जिले में स्थित नागदा सूबे के पूर्व कांग्रेस एमएलए दिलीपसिंह गुर्जर है। इस पटकथा के रचयिता कांग्रेस हाईकमान ने इनकी पीठ थपाकर पशुपति की नगरी मंदसौर के सियासती संग्राम में किसी उम्मीद से मैंदान में उतारा है। संगठन ने ऐसा क्यों किया? और दिलीपसिंह आखिरकार इस प्रस्ताव पर क्यों राजी हुए ?इस पूरी कहानी की अतीत की स्क्रिप्ट पर गौर करना होगा। मप्र की सियासत में दिलीपसिंह का किरदार वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में जमकर सुर्खियों में आया था। इस वर्ष इन्होंने नागदा’- सूबे से बतौर निर्दलीय 14,4,29 मतों से लोकतंत्र का संग्राम जीत कर प्रदेश की सियासत में हलचल मचा दी थी। इस चुनाव में दिलीपसिंह की जाति के गुर्जर समाज के वोटों ने इनकी सियासत की झोली को समृद्ध की इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता।

एक बार फिर यह चेहरा 2023 के विधानसभा चुनाव में मीडिया में सुर्खियों में आया कि भाजपा जिस सीट को क्रिटीकल मान रही थी, वहां के सियासती संग्राम में इन्हें पराजय के कडवे घूंट पीना पड़े और सियासत की इस जमीं से पांव उखड़ गए। सारे समीकरणों एवं अटकलों को झूठलाकर कांग्रेस के कदावर राजनेता श्री गुर्जर को पराजय का मुँह देखना पड़ा। वे रिकाॅर्ड मत 15, 927 से भाजपा प्रत्याशी डाॅ. तेजबहादुरसिंह चौहान से शिकस्त खा गए।जब कोई बड़ा पेड़ धराशायी होता है, तो शोरगुल मचता, आसपास की जमीं कंपन पैदा कर जाती है। दिलीपसिंह की हार से यह सब कुछ इस सूबे की सियासत में चरितार्थ हुआ और सुर्खिया बनी।

किसी भी क्षेत्र में पराजय मन को उदखलित कर देती है। पराजय, प्रतिशोध की और अग्रसर होती है। पराजय से मन की मंशा, पिपासा और अभिलाषा विजय में तब्दील होना चाहती है। फिर इनकी पराजय अब प्रतिशोध से विजय की उम्मीद में हैं। फिर सियासत में महत्वाकांक्षा कभी खामोश नहीं बैठती। सियासत की चाणक्य नीति भी तो इसी पथ पर कदम रखने की सीख देती है। संभवत दिलीपसिंह की इसी सोच, चिंतन ने उन्हें पशुपति नाथ की शरण में जाने के लिए प्रेरित किया। परिणाम सकारात्मक आया तो सिकंदर,अन्यथा तकदीर ने साथ नहीं दिया तो भी राष्ट्रीय स्तर की सियासत की राह में शोहरत ।

अब दूसरा बड़ा सवाल यह है कि आखिरकार कांग्रेस हाईकमान ने इस सीट से दिलीप सिंह गुर्जर की पीठ क्यों थपथपाई? इस सवाल का जवाब राजनैतिक पंडित अपनी विधा से यह इशारा कर रहे हैकि, आज की सियासत अब जातिगत वोटों पर टिकी है। दिलीपसिंह जिस बिरादरी गुर्जर समाज से ताल्लुकात रखते है, इस बिरादरी के वोट इस मंदसौर लोकसभा सीट में निर्णायक माने जाते हैं। इस समाज के कितने वोटर्स है ,इसका कोई पुख्ता प्रमाण तो स्पष्ट नहीं हैकि लेकिन दिलीपसिंह गुर्जर के समर्थक मंदसौर लोकसभा क्षेत्र में तकरीबन 3 लाख गुर्जर मतदाताओं का दावा कर रहे हैं। राजनीति से जुड़े पंडितों की यह भी दलील हैकि मुस्लिम मतदाता का रूझान कांग्रेस की और जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इन मतदाताओं की संख्या तकरीबन 2 लाख आंकी जा रही है। ये दो बड़े समीकरण संभवत कांग्रेस हाईकमान के गले उतरे और दिलीपसिंह को ही इस सियासत के संग्राम का नायक बनाने का मन बनाया।

भाजपा को भनक, गई भांप-

भाजपा ने हाल में मंदसौर लोकसभा क्षेत्र से जुड़े राजनेता बंशीलाल गुर्जर को हाल में राज्यसभा में भेजा है। भाजपा ने यह संकेत समूचे प्रदेश के गुर्जर मतदाताओं को एक संदेश देने का यह प्रयास किया हैकि भाजपा पिछडा वर्ग पर तो मेहरबान है साथ ही गुर्जर बिरादरी पर भी कृपा दृष्टि है। अब यह फैक्टर दिलीपसिंह की राह में कितना रोड़ा बनेगा या फिर दिलीपसिंह का सियासती चक्रव्यूह इस अवरोध को प्रभावहीन कर पाएगा यह सब कुछ अभी भविष्य की गर्त में हैं। हालांकि इसके पहले भी भाजपा ने मप्र में गुर्जर बिरादरी के सेवानिवृत आईपीएस रूस्तम सिंह को शिवराज सरकार में वर्ष 2016 में कैबिनेट मंत्री तक का ओहदा दिया था। जिनको एक बार भाजपा ने नागदा के विधानसभा चुनाव में गुर्जर मतदाताओं को रिझाने के लिए आमसभा में भी बुलाया गया था। हालांकि बाद में रूस्तमं सिंह बहुजन समाज पार्टी में चले गए। अब भाजपा ने मंदसौर क्षेत्र के बंशीलाल गुर्जर को राज्यसभा में स्थान देकर एक नया दाव प्रदेश की राजनीति में खेला है। इस दाव को मंदसौर लोकसभा के परिप्रेक्ष्य में भी आंका जा सकता है।

मंदसौर का यह समीकरण निः संदेह भाजपा की सियासत का एक हिस्सा होगा। गुर्जर समाज के राजनेता नव कृष्ण पाटिल भी इस क्षेत्र से कांग्रेस नेता है। वे इस इलाके में विधायक भी रह चुके हैं। नीमच से हाल में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव हारे गुर्जर बिरादरी के उमरावसिंह गुर्जर के द्धारा अभी-अभी भाजपा का दामन थामने की खबर सामने आई है। चुनाव के ऐन वक्त पर उमरावसिंह का पंजे से मोह छोड़कर कमल को गले लगाना भाजपा की एक रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है। यह उस समय हुआ जब दिलीपसिंह गुर्जर के नाम पर उम्मीदवारी की अंतिम मुहर लगने वाली थी। ये सभी समीकरण चुनाव के मकसद से हुए है। दिलीपसिंह को इस बार भाजपा प्रत्याशी सुधीर गुप्ता से मुकाबला करना है। सुधीर गत दो चुनाव 2019 एवं 2014 का जीत चुके हैं। अब तीसरे बार जनता के सामने होंगे। राजनैतिक पंडितों की यह दलील हैकि तीसरी बार के प्रत्याशी सुधीर के खिलाफ एंटीइनकंबेसी यदि उभरती है, तो कांग्रेस को राहत दे सकती है। लेकिन दिलीपसिंह को इस सूबे की नब्ज को समझना एक चुनौती तो है साथ ही सफलता की उम्मीद सेे लबरेज कदम भी।

नागदा में शिक्षा, तोड़ा मंदसौर का मिथक-

मंदसौर सीट के अतीत का लगभग 50 वर्ष पुराना इतिहास अर्थात 1971 से खंगाला जाए तो यह भाजपा का गढ माना गया है। दिवंगत डाॅ .लक्ष्मीनारायण पांडे इस सीट से 8 मर्तबा सांसद चुने गए है। हालांकि तीन बार यहां से कभी स्व. भवरलाल नाहटा तो कभी स्व .बालकवि बैरागी व एक बार मीनाक्षी नटराजन कांग्रेस की टिकट पर विजय की फताका फहरा चुके हैं। इस क्षेत्र मे डाॅ .लक्ष्मीनारायण पाॅडे जब भाजपा अस्तित्व में नहीं थे उसके पहले भी वे भारतीय जनसंघ के चुनाव चिन्ह दीपक से इस क्षेत्र से प्रतिनिधित्व करने में कामयाब हुए। उनके नाम 1971 में भारतीय जनसंघ की टिकट पर पहला चुनाव जीतना इतिहास मे दर्ज है। डाॅ .पांडे इस क्षेत्र से कुल 11 बार चुनाव लड़े थे। जिस में से आठ बार सफलता हाथ लगी।

इस लोकसभा क्षेत्र की एक बड़ा मिथक मीनाक्षी नटराजन ने वर्ष 2009 में तोड़ा था। वर्ष 1984 में इस सीट से बालकवि बैरागी चुनाव जीते थे। उसके बाद वर्ष 1989 से 2009 तक लगातार लगभग20 वर्ष तक भाजपा के डाॅ लक्ष्मीनारायण पांडे कुल 6 बार चुनाव जीते। इसके पहले दो बार वर्ष 1971 एवं 1997 में विजय हुए।

वर्ष 1989 से लेकर वर्ष 2004 तक के चुनाव अर्थात 2009 तक डाॅ पांडे ने इस लोकसभा में राज किया। तब यह माना जा रहा थाकि इस क्षेत्र में अब कांग्रेस बाहर हो गई, लेकिन वर्ष 2009 में मंदसौर से कांग्रेस उम्मीदवार मीनाक्षी नटराजन ने इस मिथक को तोड़ दिया। वे इस चुनाव में जीत का परचम लहराने में कामयाब हुई। इस चुनाव के पहले मीनाक्षी का नाम प्रदेश की युवक कांग्रेस की राजनीति में सुर्खियों में आया था। वे वर्ष 2003 में मप्र युवक कांग्रेस की अध्यक्ष बनी थी और बाद में वर्ष 2009 में मंदसौर से चुनाव लड़ा था। उस जमाने में युवक कांग्रेस की राजनीति बढी परवान पर हुआ करती थी। इसी कारण से मीनाक्षी की युवक काग्रेस की शोहरत ने संसद में भेज दिया। हालांकि बाद में मीनाक्षी इसी सीट से दो बार कमश 2014 एवं 2019 में हार गई। पिछला 2019 का चुनाव भाजपा के सुधीर गुप्ता 3 लाख से भी अधिक मतो से कांग्रेस उम्मीदवार मीनाक्षी को हराकर जीते हैं।

जिस तेज तरोर्ट नेत्री ने भाजपा के कदावर राजनेता डाॅ. लक्ष्मीनारायण पांडे का हराकर जो मिथक तोड़ा था उस मीनाक्षी की प्रारभिक शिक्षा उसी शहर नागदा में हुई थी जिस शहर में कांग्रेस उम्मीदवार दिलीप सिंह गुर्जर की हुई है। यह करिश्मा या टोटका भाजपा उम्मीदवा सुधीर गुप्ता की तीसरी पारी में कितना रोड़ा बनेगा दिलीपसिंह की तकदीर में कितना कारगर होगा यह सब भविष्य की गर्त में हैं।

सचिन पायलेट से उम्मीद-

मंदसौर में नि:संदेह जातिगत समीकरणों को साधने के लिए दोनों दलों के प्रत्याशी प्रचार एवं आमसभा में बड़े राजनेताओं को याद करेंगे। दिलीपसिंह के पक्ष में कयास लगाए जा रहे हैकि मंदसौर क्षेत्र से सटे राजस्थान के राजनेता सचिन पायलेट की ताकत को गुर्जर मतदाताओं को रूझाने के लिए बतौर आमसभा बुलाया जा सकता है। सचिन भी गुर्जर समाज से हैं। दिलीपसिंह गुर्जर के पक्ष में सचिन कई बार विधानसभा चुनाव के दौरान नागदा भी आ चुके हैं।

 

कैलाश सनोलिया

 राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकार (मप्र शासन)

 संवाददाता हिंदुस्थान समाचार एजेंसी

 

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