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जीवन परमात्मा की ओर से मिला हुआ प्रसाद है, इसे शांति से जीएं अशांति से नहीं – राष्ट्रसंत श्री ललित प्रभ जी

संजय गांधी उद्यान में जीने की कला पर दो दिवसीय प्रवचन माला का हुआ समापन

मंदसौर। राष्ट्रसंत श्री ललितप्रभ सागर जी महाराज ने कहा कि जीवन परमात्मा की ओर से मिला हुआ प्रसाद है। इसे शांति से जीना या अशांति से, अवसाद से जीना या आनंद से, यह हम पर निर्भर है। हम काले हैं या गौरे, इसमें न तो हमारी कोई खामी है न कोई खासियत। क्योंकि चेहरे का रंग देना कुदरत का काम है, पर जीवन को किस ढंग से जीना यह हमारे संकल्प का परिणाम है। उन्होंने कहा कि चेहरे को कितना ही चमका लो, दूसरे दिन वह पहले जैसा हो जाएगा, पर मन को थोड़ा-सा चमका लिया तो पूरी जिंदगी चमक जाएगी।
संतप्रवर नई आबादी स्थित संजय गांधी उद्यान में आयोजित दो दिवसीय प्रवचन माला के समापन पर श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जीवन में परिस्थितियां किसी के भी सदा एक जैसी नहीं रहती, लेकिन फिर भी जो परिस्थिति के बदलने या बिगड़ने के बावजूद मन स्थिति को बिगड़ने नहीं देता वह सदा खुश रहता है। याद रखें, दूध फटने पर वे ही लोग दुखी होते हैं जिन्हें रसगुल्ला बनाना नहीं आता। उन्होंने कहा कि आज कुंवारा भी दुखी है और शादीशुदा भी। शादीशुदा गुस्सैल पत्नी के कारण दुखी है तो कुंवारा शादी न होने के कारण, पर जो हर स्थिति को परमात्मा के प्रसाद की तरह स्वीकार करता है उसका जीवन स्वतः शानदार बन जाता है।
चिंता, क्रोध और ईर्ष्या से बचें – शानदार जीवन का पहला नुस्खा देते हुए संत श्री ने कहा कि जीवन के तीन शत्रु हैं – चिंता, क्रोध और ईर्ष्या। चिंता दिल को, क्रोध दिमाग को और ईर्ष्या संबंधों को नष्ट कर देती है। जब अनहोनी को किया नहीं जा सकता और होनी को टाला नहीं जा सकता तो व्यक्ति कि बात की चिंता करे। उन्होंने कहा कि माफ करना और माफी मांगना ये दुनिया के दो सबसे बड़े धर्म हैं। जिस घर में ये दो धर्म रहते हैं वहाँ कभी-भी क्रोध का दावानल नहीं सुलगता। उन्होंने कहा कि हमें हमारे भाग्य से ज्यादा मिला है इसलिए दूसरों को जो मिला है उसे देखकर ईर्ष्या मत पालिए। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि जो गलती करके सुधर जाए उसे इंसान कहते हैं जो गलती पर गलती करे उसे नादान कहते हैं, जो उससे भी ज्यादा गलतियां करे उसे शैतान कहते हैं, पर जो उसकी भी गलतियां माफ कर दे उसे ही हम अपना हिन्दुस्तान कहते हैं।
जिंदगी को जिंदादिली के साथ जिएँ – दूसरा नुस्खा देते हुए संतप्रवर ने कहा कि जिंदगी को बढ़ाना हमारे हाथ में नहीं है, पर जिंदगी को बनाना हमारे हाथ में है। इसलिए व्यक्ति जितना जल्दी हो सके जीवन में घट चुके अप्रिय प्रसंगों को भूल जाए और हर श्वास को आनंद के साथ ले।
सामंजस्य बढ़ाने की कोशिश करें – तीसरा नुस्खा देते हुए संत श्री ने कहा कि घर के सभी सदस्य आपस में सामंजस्य बढ़ाएं और एक-दूसरे को निभाएं। अगर बहू सिर ढक के बैठे तो अच्छी बात है और बिना सिर ढक के बैठ जाए तो उसमें बेटी को देखने का आनंद ले लें।
वाणी को मधुर बनाने की प्रेरणा देते हुए संत प्रवर ने कहा कि इंसान की पहचान ऊँचे पहनावे से नहीं ऊँची जुबान से होती है। हम शब्दों को संभलकर बोलें। शब्दों में बड़ी जान होती है। इन्हीं से आरती, अरदास और अजान होती है। ये समंदर के वे मोती हैं जिनसे अच्छे आदमी की पहचान होती है। उन्होंने कहा कि बोलने की कला राम से सीखो। जहाँ रावण ने कड़क जबान से अपने सगे भाई विभीषण को खो दिया वहीं राम ने मीठी जबान से दुश्मन के भाई को भी अपना बना लिया। अगर द्रोपदी भी दुर्याेधन पर श्अंधे का बेटा अंधा कहने का व्यग्ंय बाण न छोड़ती तो शायद न उसका चीरहरण होता न महाभारत का युद्ध छिड़ता।
उन्होंने कहा कि बोलने की कला में ही लोकप्रियता का राज छिपा हुआ है। हमारे करियर में चेहरे की खूबसूरती की भूमिका दस प्रतिशत होती है, पर वाणी की खूबसूरती की भूमिका नब्बे प्रतिशत। अगर काला व्यक्ति भी सही ढंग से बोलेगा तो लोगों को सुहाएगा और गोरा व्यक्ति अंट-संट बोलेगा तो लोगों को खटकेगा। ग्राहक भी उसी दुकान पर ज्यादा आते हैं जहाँ मिठास भरा व्यवहार होता है और घर में भी वही बहू सास को ज्यादा सुहाती है जो मिठास भरी भाषा बोलती है। उन्होंने कहा कि किसी भी रिश्ते के टूटने के पीछे धन, दौलत, जमीन-जायदाद का कम, कड़वी जबान का हाथ ज्यादा हुआ करता है। व्यक्ति जुबान का सही उपयोग करके टूटे रिश्तों को भी सांध सकता है और बिगड़े माहौल को अपने अनुकूल बना सकता है।
किसी पर भी व्यंग्य मत कसिए-संतप्रवर ने कहा कि हम किसी को सुख पहुँचाएँ तो अच्छी बात है, पर किसी पर व्यंग्य कसकर उसे दुख भूलचूककर भी न पहुँचाएँ। हम तो व्यंग्य भरी और टेढ़ी बात बोलकर खिसक जाते हैं, पर इससे किसी के दिल को कितनी ठेस पहुँचती है उसका हम अनुमान लगा नहीं पाते। हमें केवल बोलना ही नहीं आना चाहिए, वरन् क्या बोलना, कब बोलना, कैसे बोलना यह भी आना चाहिए।
बोलने से पहले मुस्कुराए एवं प्रणाम करें-बोलने की कला सिखाते हुए संतप्रवर ने कहा कि बोलने से पहले अपने चेहरे और हाथों की स्थिति ठीक कर लें। पहले मुस्कुराकर प्रणाम करें फिर बोलें, यह आपकी वाणी को हजार गुना प्रभावशाली बना देगा। माइक पर बोलने में संकोच न रखने की सीख देते हुए संतप्रवर ने कहा कि कुछ लोग मंच पर आकर बोलने से डरते हैं। शोले फिल्म के इस डायलॉग को सदा याद रखें, जो डर गया सो मर गया। जब हम चार लोगों के साथ आराम से बात कर सकते हैं तो चार सौ लोगों के बीच बात क्यों नहीं कर सकते। बोलने से पहले दिमाग में तैयारी कर लें। होमवर्क जितना मजबूत होगा हम उतनी ही मजबूती से बोल पाएँगे।
जब भी बोलें सम्मान देते हुए बोलें-संतप्रवर ने सम्मान के साथ बोलने की प्रेरणा देते हुए कहा कि जब भी बोलें सबको सम्मान देते हुए बोलें। माता-पिता का नाम बोलने से पहले ‘श्री’ व बाद में ‘जी’ लगाएँ। कर्मचारी तक को भी आप कहकर बुलाएँ। जवाब देते समय हाँ या ना से पहले ‘जी’ लगाएँ। छोटा हो या बड़ा, नाम सम्मानपूर्वक पुकारें। भाषा में ‘प्लीज, थेंक्यू, सॉरी’ जैसे शब्दों का भरपूर इस्तेमाल करें। शिष्ट, इष्ट और मिष्ट भाषा इंसान को औरों के दिलों में सदा के लिए अमर कर देती है।
प्रारंभ में राज्यसभा सांसद श्री बंसीलाल गुर्जर, पूर्व मंत्री श्री नरेंद्र नाहटा, नगर पालिका अध्यक्ष श्रीमती रमादेवी गुर्जर, सकल जैन समाज अध्यक्ष जय बड़जात्या, पूर्व अध्यक्ष श्री मंगेश भाचावत, श्री दिलीप लोढ़ा, श्री विनोद पोरवाल, श्री प्रतीक डोसी ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंम किया।
इस दौरान साहित्य का वितरण डॉ श्री अनिल बरडिया एवं सकल जैन समाज अध्यक्ष श्री जय बड़जात्या द्वारा श्रद्धालुओं को वितरण किया गया। लाभार्थी ज्ञानचंद चंद्रदेवी पोखरना रंगवाला अभय पोखरना पिंटू सुरेंद्र पोखरना परिवार का आयोजन समिति द्वारा सभी अथितियों का बहुमान किया गया । आयोजन समिति के कमल कोठारी, राकेश दुग्गड, कपिल भंडारी, अरविन्द बोथरा, अभय नाहटा, प्रदीप जैन, अनिल बरडिया, विजय सुराणा, अभय चौरडिया, अमित छिंगावत, महेश जैन, रितेश पोखरना, विजेंद्र फांफरिया, राजेश बोहरा, राजकुमार श्रीमाल ने सभी श्रद्धालुओं को धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन कपिल भंडारी ने किया। व उपस्थित समस्त श्रद्धालुओं का आभार कमल कोठारी ने माना।

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