जिस प्रकार से चमकने वाले पत्थर रुबी हीरे कि परख मोल जोहरी ही कर सकता है वैसे ही सच्चे भक्त को ही भगवत प्राप्ति होती है – डॉ कृष्णानंद जी महाराज
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संस्कार दर्शन
सीतामऊ। श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव के सातवें दिन कथा का अमृत पान कराते हुए डॉ कृष्णानंद जी महाराज ने कहा कि मित्रता कैसे निभाई जाए यह भगवान श्री कृष्ण सुदामा जी से समझ सकते हैं । उन्होंने कहा कि सुदामा अपनी पत्नी के आग्रह पर अपने मित्र द्वारिकाधीश से सखा सुदामा मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे। महाराज श्री ने कहा कि सुदामा द्वारिकाधीश के महल का पता पूछा और महल की ओर बढ़ने लगे द्वार पर द्वारपालों ने सुदामा को भिक्षा मांगने वाला भिखारी समझकर रोक दिया। तब उन्होंने कहा कि वह कृष्ण के मित्र हैं इस पर द्वारपाल महल में गए और प्रभु से कहा कि कोई उनसे मिलने आया है। अपना नाम सुदामा बता रहा है जैसे ही द्वारपाल के मुंह से उन्होंने सुदामा का नाम सुना प्रभु सुदामा सुदामा कहते हुए तेजी से द्वार की तरफ भागे सामने सुदामा सखा को देखकर उन्होंने उसे अपने सीने से लगा लिया। सुदामा ने भी कन्हैया कन्हैया कहकर उन्हें गले लगाया दोनों की ऐसी मित्रता देखकर सभा में बैठे सभी लोग अचंभित हो गए। कृष्ण सुदामा को अपने राज सिंहासन पर बैठाया हुआ। और हाल चाल जाने भगवान ने सुदामा कि गरीबी देख कर कहा मित्र इतने दिन हो गए मुझे याद नहीं किया। मित्र सुदामा को भगवान ने अच्छे अच्छे पकवान भोजन खिला कर नये वस्त्र पहनाकर विदाई दी और कहा कि जब भी दुख संकट हो मुझे याद करना। इधर भगवान ने सुदामा जी झोपड़ी को महल बना दिया और धन धान्य से परिपूर्ण कर मालामाल कर दिया। महाराज श्री ने कहा कि जब जब भी भक्तों पर विपदा आ पड़ी है। प्रभु उनका तारण करने अवश्य आए हैं।महाराज श्री ने कहा कि कभी भी मित्र के साथ धोखा नही करना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि भागवत कथा ही ऐसी कथा है, जिसके श्रवण मात्र से ही मनुष्य मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है। भगवान कृष्ण के सामान कोई सहनशील नही है।मनुष्य स्वंय को भगवान बनाने के बजाय प्रभु का दास बनने का प्रयास करें, क्योंकि भक्ति भाव देख कर जब प्रभु में वात्सल्य जागता है तो वे सब कुछ छोड़ कर अपने भक्तरूपी संतान के पास दौड़े चले आते हैं।
डॉ कृष्णानंद जी ने एक वृतांत के माध्यम से बताया कि जिस प्रकार से चमकने वाले पत्थर हीरे रुबी की परख मोल जोहरी ही कर सकता है वैसे ही भगवान की भक्ति और उसका आशीर्वाद सच्चे मन से पुकारने वाला ही प्राप्त कर सकता है। गृहस्थ जीवन में मनुष्य तनाव में जीता है, जब कि संत सद्भाव में जीता है। यदि संत नहीं बन सकते तो संतोषी बन जाओ। संतोष सबसे बड़ा धन है।सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव में डॉ कृष्णानंद जी के मुखारविंद से सभी भक्तों ने भक्ति भाव में रम कर कथा आनंद प्राप्त किया।
इस अवसर पर सीतामऊ नगर क्षेत्र के साथ-साथ सुवासरा शामगढ़ गरोठ भानपुरा मंदसौर देवास चोमहला इंदौर रतलाम नीमच मनासा आदि विभिन्न स्थानों के कई भक्तों के साथ क्षेत्रीय विधायक एवं कैबिनेट मंत्री श्री हरदीप सिंह डंग जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती दुर्गा विजय पाटीदार कांग्रेस नेता राकेश पाटीदार सहित कई जनप्रतिनिधि नेताओं ने महाराज श्री का स्वागत अभिनंदन कर कथा का ज्ञानामृत प्राप्त किया।
कथा के अवसर पर भगवान श्री कृष्ण तुलसी विवाह का आयोजन किया गया जिसमें शामगढ़ से माता तुलसी को लेकर सीतामऊ पहुंचे भक्तजनों द्वारा ढोल ढमाको के साथ सीतामऊ बस स्टैंड से बारात लेकर कथा पांडाल पहुंचे जहां भगवान श्री कृष्ण तुलसी का विवाह संपन्न कराया गया।
कथा के आयोजन में पोरवाल समाज सीतामऊ द्वारा महाराज श्री का स्वागत अभिनंदन किया वही भक्ति की अविरल धारा को प्रभावित करने वाले यजमान श्री राधेश्याम घाटिया का साफा बांधकर स्वागत सम्मान किया गया।
कथा के विश्राम के इस अवसर पर घाटिया परिवार की ओर से कथा आयोजक राधेश्याम घाटिया द्वारा गुरुदेव से कथा महोत्सव में आंनद स्वरुप भगवत मिलन कराने पर गदगद भरें मन से डॉ कृष्णानंद जी महाराज को प्रणाम कर आशीर्वाद प्राप्त किया और सभी पधारे भक्तजनों तथा प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सहयोग कर्ताओं का हृदय की अनंत गहराइयों से धन्यवाद ज्ञापित किया।