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भव्य कलश यात्रा एवं महाराज श्री की शोभायात्रा के साथ सीतामऊ में श्रीमद् भागवत कथा हुई प्रारंभ
संस्कार दर्शन
सीतामऊ । श्रीमद् भागवत कथा के प्रथम दिवस घटिया स्टोन मर्चेंट मंदसौर रोड़ से अंतर्राष्ट्रीय संत डॉ. कृष्णानंद जी महाराज के भव्य स्वागत वंदन अभिनंदन के साथ भव्य कलश यात्रा का आयोजन ढोल धमाके बैंड बाजे एवं नागरिकों धर्म प्रेमी जनता द्वारा जय-जय श्री कृष्णा के जयकारे के साथ कलश यात्रा प्रारंभ हुई कलश यात्रा एवं महाराज श्री की शोभायात्रा बड़ी संख्या में महिलाओं पुरुषों के साथ महाराणा प्रताप चौराहा से होकर लाडली लक्ष्मी मार्ग बस स्टैंड से राजा टोडरमल मार्ग होकर पोरवाल मांगलिक भवन पहुंची।


संत श्री ने कहा कि जब हम कहीं जा रहे हैं और कोई संत या भक्त भगवान के भजन भक्ति में लीन मिल जाए तो समझ लेना कि हमारा जीवन धन्य हो गया है और ऐसे संत नगर में निकल जाते तो नगर पवित्र हो जाता है। श्रीमद् भागवत कथा के श्रवण से भक्ति के पुत्र ज्ञान और वैराग्य को मरणासन्न स्थिति से फिर से जवान हो गए। वैसे ही हमको भी अंहकार मद लोभ आदि से दुर कर एक नया ज्ञान का आवरण प्रदान करती है। संत श्री ने कहा कि हम घर में पूजा तो रोज करते हैं पर मन लगाकर नहीं करते हैं यदि मन लगाकर पूजा करें और थोड़ी सी भक्ति चित में उतर जाए तो जीवन आनंद में हो जाता है जिस प्रकार से दही बनाने के लिए एक या दो चम्मच जामन डालते हैं और दही बन जाता है वैसे ही भगवान के प्रति भक्ति भाव में जो खो जाता हैं वह परमानंद को प्राप्त कर लेता है। संत श्री ने कहा कि भगवत कथा हमारे ज्ञान वैराग्य को जगाती हैं।
कथा में सुत जी कहते हैं कि कथा के सुनने से प्रेत भटकती आत्मा (दानव) जीवन का अंत होकर देवता बन जाता है तो हम इस भागवत कथा को जीते जी सुन रहे हैं।
संत श्री ने कहा कि हम आज की भाग दौड़ में बढ़ रहे हैं सबको ज्ञान है कि जितना हम इकट्ठा कर रहे हैं सब यहीं रह जाएगा पर फिर भी हम इकट्ठा करने में लगे हुए हैं और अपनो से दुर होकर अपने जीवन के आनंद को खत्म कर रहे हैं। जितना समय हम इधर-उधर दे रहे हैं उसमें से थोड़ा भी समय हम भगवान को देते हैं तो भगवान हमें भी संकट के समय अपना समय देता है ।
संत श्री ने कहा कि जिस प्रकार से धुंधली केवल नाच गाना और अपने सिंगार में व्यस्त रहती थी वह ब्राह्मणी होकर भी राक्षसी जीवन व्यतीत करती थी उसके घर में ना दीपक जलता ना पूजा-पाठ होता है ना किसी संत महात्मा का मेहमानों का आगमन होता था। केवल वह अपने स्वार्थ में डूबी हुई रहती थी।
संत श्री ने कहा कि जिस घर दीपक नहीं जलता पूजा पाठ नहीं होती, जहां संत महात्मा मेहमानों का आदर सत्कार नहीं होता और परिवार के सदस्यों में अनबन रहती है क्लेश होता रहता है वहां परम आनंद परमानंद नहीं रहता वहां सब कुछ नष्ट हो जाता है।

