आलेख/ विचारमंदसौरमध्यप्रदेश

संसार और संसार के समस्त संसाधन एक अदृश्य स्वामी की संपत्ति ” अपना कुछ भी नहीं “

**********”””********************

संसार और संसार के समस्त संसाधन एक अदृश्य स्वामी की संपत्ति ” अपना कुछ भी नहीं “

 

सुरेंद्र यादव 

समाजसेवी पत्रकार

शामगढ़ जिला मंदसौर मध्यप्रदेश 

संसार और संसार के समस्त संसाधन एक अदृश्य स्वामी की संपत्ति हैं , जिसे सर्व शक्तिमान , अल्लाह , ईश्वर या गॉड कोई भी नाम दे सकते हैं । हमें उसने दुनिया के समस्त संसाधनों का उपयोग करने का अवसर दिया है , परन्तु स्वयं को उनका स्वामी समझने का कदापि अधिकार नहीं दिया है । संसार के समस्त संसाधन संसार की भलाई के लिए मिले हैं , सिर्फ स्वयं को शारीरिक और मानसिक या इन्द्रियजन्य सुख देने के लिए नहीं ।

शून्य से उठ कर शून्य में मिलना ही जीवन का अंतिम सत्य है परन्तु फिर भी लोग जीवन को सुखी बनाने के लिए धन कमाने के विविध प्रयोजन करते रहते हैं । इस फेर मे अपना सुख और शांति खो बैठते हैं । वे साधन को साध्य बना लेते हैं । वे विचार नही कर पाते कि धन शरीर के लिए है न कि शरीर धन के लिए । अक्सर वह धन ही को सब कुछ समझ बैठते हैं , स्वार्थ को गले लगा लेते हैं और अच्छे भले रिश्तों की बलि चढ़ा देते हैं । यह सच है कि जीवन मे धन दौलत ज़रूरी है लेकिन धन के प्रति आदर हो , आसक्त न हो । धन के प्रति इच्छा हो , मोह न हो । धन के प्रति समझ हो , अज्ञान न हो । धन के प्रति मनन हो , चिंता न हो । धन इस्तेमाल की वस्तु हो , भगवान न हो । धन के विषय मे शास्त्रों मे पहले से ही कहा गया है कि अपने धन से दान और उपभोग जिसने कर लिया , उसका धन तो सार्थक है , अन्यथा इसका विनाश ही इसकी अंतिम गति है ।

बहुधा हम वर्तमान को ही अपना सब कुछ समझ लेते हैं । हमारे सभी कष्ट यहीं से प्रारम्भ होते हैं । हमें जो अनुकूल लगता है उसे हम सुख मान लेते हैं और जो प्रतिकूल अनुभूत होता है , उसे दुख समझ लेते हैं । दुख या कष्ट अपने भीतर सहनशीलता – संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए और क्रोध का त्याग सिखाने के लिए मिले हैं , डिप्रेशन मे डूब जाने के लिए नहीं । अनुकूल और प्रतिकूल दोनों ही परिस्थिति में हमें भूलना नहीं चाहिए कि हम उस परम सत्ता के मात्र एक संवाहक हैं । हमें जो भी कार्य दिया गया है , उसे ईमानदारी से करना चाहिए ।

मनुष्य के जीवन मे धन , बल , और ज्ञान तीनो शक्ति के ही समान हैं । अनीतिपूर्वक कमाया गया धन सच्चा सुख नहीं दे सकता । धन पाकर जो धन का सदुपयोग नहीं करता , वह निर्धन होता है । बल पाकर जो बल का सदुपयोग नहीं करता , वह कभी किसी की सहायता नही करता , वास्तव में वह निर्बल ही होता है । छल से प्राप्त बल यश नहीं दे सकता । ज्ञान या विद्या पाकर जो उसका सदुपयोग नहीं करता , वह सबसे बड़ा मूर्ख होता है । याद रखिए बड़ा वह नही है जिसका घर बड़ा हो , बड़ा वह नहीं है , जिसका मोबाइल मंहगा हो , बड़ा वह नहीं है जिसका लिबास मंहगा हो , बड़ा वह नहीं है जिसकी गाड़ी बड़ी हो बल्कि बड़ा वह है जिसका दिल बड़ा हो , जिसके पास बैठने वाला इंसान अपने को छोटा महसूस न करे । यही वास्तविक मानवीय गुण है ।

सम्मान हमेशा समय और स्थिति का होता है । संसार हमारे जन्म से पहले भी विद्यमान था , हमारी मृत्यु के बाद भी रहेगा । जीवन का मतलब तो , आना और जाना है । जवानी के सुनहरे पल , सुन्दरता , शक्ति , धन – दौलत , पद -प्रतिष्ठा ये सभी विधाता ने मनुष्य को उपयोग के लिए दिया है , इसे अपनी संपत्ति नहीं समझना चाहिए । जिसप्रकार बैंक मे कार्य करने वाला कर्मी दिन भर कितने भी नोटों की गिनती कर ले , उससे उनका कोई अटैचमेंट नही होता , क्योंकि वह जानता है कि यह संपत्ति तो बैक की है । प्रत्येक प्राणी यही भाव प्रमात्मा और उसकी संपत्ति के विषय मे भी रखे तो उसके लिए श्रेस्यकर होगा ।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
site-below-footer-wrap[data-section="section-below-footer-builder"] { margin-bottom: 40px;}