शिवराज की नजरें नहीं इनायत एक हस्ती की मंशा पर,नागदा क्यों नहीं बना जिला, सूलगते सवाल

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0 कमलनाथ के मन को तो लुभा गई थी मंशा
0 भाजपा ने सिकोड़ी नाक, मूर्छित कांग्रेस मूंद आंख
–कैलाश सनोलिया
राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकार
मध्यप्रदेश शासन
नागदा। किस्सा लगभग 12 वर्ष पूराना है। 16 सितंबर 2010 का दिन। याने इस युग का एक पूरा सिहस्थ निकल गया। उस दिन वह अनूठा नजारा था, जब सीएम शिवराज का आकाश में मंडराता उड़नखटौला ग्रेसिम उद्योग की हवाई पटृटी पर लैडिंग होता है। तमाम सुरक्षा के चक्रव्यूह इंतजाम में प्रदेश मुखिया के पांव नागदा की धरा पर पड़तें हैं। अगवानी के लिए राजनेताओं में होड़ मच गई। पब्लिक की भीैड़ भी सीएम की झलक पाने को आतुर। इस दौरान प्रदेश मुखिया शिवराज के हाथों में एक मांगपत्र पहुंचता है। इस मांगपत्र का वजन इसलिए भारी हो गया था कि मांग का कवरिंग पत्र हिंदुस्तान की एक जानी-मानी हस्ती ने अपने हस्ताक्षर से दिया था।
कवरिंग पत्र के साथ संलग्न भाजपा मंडल नागदा की कुल 19 मांग शुमार थी।जिस हस्ती ने कवरिंग पत्र दिया था, उनकी शोहरत उस समय भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री के किरदार में थी। उस हस्ती का नाम डॉ. थावरचंद गेहलोत है। जिनको बाद में भारत सरकार केंद्रीय मं़ित्रमंडल में मुकाम मिला। संगठन में नीति निर्धारण की शीर्ष संस्था भाजपा संसदीय बोर्ड में सदस्य का ओहदा भी नसीब हुआ। इन दिनों गौरवशाली महामहिम राज्यपाल के पद पर आसन्नगी है। डॉ. गेहलोत ने अपनी अनुशंसा का यह पत्र भाजपा के स्थानीय संगठन की और से सीएम को दिए गए ज्ञापन के समर्थन में दिया था। ज्ञापन की मांग में पहले क्रम पर ही नागदा को जिला बनाने की मांग थी। इस मांगपत्र के प्रमाण सुरक्षित है।
मांगपत्र पर बतौर भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष डॉ. तेजबहादुरसिंह चौहान, पूर्व विधायक लालसिंह राणावत, बतौर पूर्व उर्जा विकास निगम अध्यक्ष दिलीप सिंह शेखावत एवं मंडल अध्यक्ष धर्मेश जायसवाल के हस्ताक्षर थे। इतना नही नागदा को जिला बनने की इस मांग के समर्थन में भाजपा बहुमत की नपा परिषद भी आगे आई। एक प्रस्ताव शासन के नाम पारित किया। इधर, भाजपा के इस मांग पत्र के पहले से ही वर्ष 2008 से कांग्रेस एम.एल.ए. दिलीपंसिंह गुर्जर जिला बनाने की मांग पर मैंदान में आ चुके थे। जाहिर है,इस मांग पर सारे राजनेता भाजपा-कांग्रेस एक जाजम पर हैं।
भाजपा बहुमत परिषद भी आगे-
इधर, भाजपा बहुमत की तत्कालीन नपा परिषद नागदा ने सर्वानुमति से नागदा को जिला बनाने का प्रस्ताव 30 अप्रैल 2010 को पारित किया। भाजपा के साथ- साथ कांग्रेस पार्षदों ने भी इस प्रस्ताव पर हामी भरी। यह अलग बात हैकि नपा का यह प्रस्ताव स्थानीय स्तर पर ही सिमट कर रह गया। वल्लभ भवन में आर.टी.आई. के आलोक में इस पत्रकार ने काफी तलाशा, लेकिन किसी भी कोने में यह प्रस्ताव रोशन नहीं हुआ। मतलब गंतव्य तक पहुंच ही नहीं पाया और यह प्रस्ताव महज आडंबर साबित हुआ।
कांग्रेस भी पक्ष में-
कंाग्रेस विधायक दिलीपसिंह गुर्जर ने लगभग 14 वर्ष पहले 2008 सें ही यह मांग उठा रखी थी। विधानसभा में भी मामले उठाए। शहर बंद आंदोलन के दौरान सड़कों पर भी उतरे । जनता अब इस बात को समझे कि जिस मांग की अनुशंसा भाजपा के शीर्ष डॉ. गेहलोत ने की, भाजपा संगठन ने की, भाजपा बहुमत की नपा परिषद ने प्रस्ताव पारित किया और कांग्रेस विधायक श्री गुर्जर भी इसी मांग पर को उठाते आए। मतलब सारी सियासती शक्तियां इस मांग पर एक जाजम पर है। सवाल हैकि फिर नागदा के सिर पर जिले का सेहरा क्यों नहीं बंध रहा है। सच्चाई को परखे तो शहर को जिले का ओहदा देने के लिए परीक्षण हुए। पहला परीक्षण प्रस्ताव शिवराज सरकार में हुआ। दुर्भाग्य हैकि यह प्रस्ताव परीक्षण के बाद 2 जून 2012 को इसी सरकार में खारिज हुआ। दूसरा परीक्षण कमलनाथ सरकार में हुआ। यह परीक्षण मंजूर हुआ। कमलनाथ सरकार में 18 मार्च 2020 को मंत्रिमंडल से शहर को जिला बनाने का प्रस्ताव पारित भी कर दिया। अधिसूचना जारी हो उसके पहले सिंधिया की बगावत से कमलनाथ सरकार गिर गई। शिवराज सरकार फिर बनी, लेकिन अधिसूचना की कार्यवाही अब वल्लभ भवन में घूंटन के बीच दबी पड़ी है।
तथ्यों को समझे-
परीक्षण का यह आशय थाकि यह शहर जिला बनने लायक है या नहीं। इस मामले में दो बार परीक्षण रिपोर्ट वल्लभ भवन भोपाल पहंुची। ये रिपोर्ट किस की सरकार में किस पार्टी के विधायक काल में पहुची उस पर बात कर ली जाए। विधायक गुर्जर के विधासभा में एक सवाल के बाद मप्र शासन ने तत्कालीन कलेक्टर उज्जैन से जानकारियां मांगी। तत्कालीन कलेक्टर ने दिनांक 18 अप्रैल 2012 के माध्यम से प्रतिवेदन वल्लभ भवन भेजा। इस प्रतिवेदन में उज्जैन जिले की नागदा, खाचरौद, महिदपुर एवं रतलाम जिले की आलोट तहसील को मिलाकर जिला बनाने का प्रस्ताव था।
इस प्रस्तावित जिले में कुल 559 गांव जोड़नेे की अनंुशंसा हुई। प्रस्तावित नागदा जिले का क्षेत्रफल 292134 हैक्टर परीक्षण में आंका गया। मजेदार बात यहा अब यह हैकि इस परीक्षण को शिवराज सरकार के एक अधिकारी राजस्व अवर सचिव ने जून 2012 में खारिज कर दिया। यह प्रस्ताव क्यों खारिज हुआ उसका कारण बस इतना बताया गया कि नागदा को जिला बनाने के तथ्य उभर कर सामने नहीं आए। मतलब जाहिर हैकि जिस मांग को नागदा के भाजपा के सारे नेताओं ने उठाई थी, यह मांग उनकी सरकार में खारिज हो गई। ये लोग डॉ. गेहलोत जैसे कदावर नेता की मंशा की मांग को अपनी ही सरकार में अंजाम नहीं दिला पाए। यह प्रस्ताव जब खारिज हुआ तब किसी भी दल के नेता भाजपा या कांगेेस ने अपनी और से सार्वजनिक नहीं किया कि जिला बनाने का प्रस्ताव खारिज हो गया।
2013 के चुनाव में आश्वासन-
प्रस्ताव निरस्त होने के थोडे़ समय बाद वर्ष 2013 के विधानसभा के चुनाव का बिगुल गूंजा। कांग्रेस विधायक श्री गुर्जर फिर नागदा को जिला बनाने की हठ पर आ गए। आंदोलन भी इस दौरान किए। वर्ष 2013 के विधान सभा चुनाव में श्री गुर्जर इसी मांग को दोहरा रहे थे, उधर, भाजपा उम्मीदवार श्री शेखावत ने भी इस मांग के पक्ष में पासा फंेक दिया। मतलब सूबे के दोनों जिम्मेदार राजनेता नागदा को जिला बनाने के लिए सियासत की शतरंज पर चाल चल पडें़। चुनाव के पहले शिवराज नागदा में आर्शीवाद यात्रा पर आए। विधानसभा चुनाव समय नजदीक था। विधायक गुर्जर ने दांव खेला और जिस दिन शिवराज यहां आए शहर में जिला बनाने की मांग के बडे़-बडे़ होर्डिग्स टांग दिए।
मेरा सवाल शिवराज का जवाब-
आर्शीवाद यात्रा पर आए सीएम की सर्किट हाउस पर प्रेसवार्ता हुई। इस पत्रकार ने शिवराज से सवाल कर लिया कि कांग्रेस विधायक गुर्जर ने नागदा को जिला बनाने की मांग उठा रखी है। शिवराज बोले यह मात्र राजनैतिक स्टंड है। भविष्य में इस मांग की तस्वीर कैसे होगी इस सवाल पर भी शिवराज नकारात्मक मूढ़ में नजर आए ।
इधर, भाजपा प्रत्याशी श्री शेखावत ने वर्ष 2013 का विधान चुनाव दो कमिटमेंट पर लड़ा। पहला नागदा को जिला बनाना और दूसरा स्थानीय उद्योग में यहां के युवाओं को रोजगार मिले। उधर, श्रीगुर्जर तो इस मांग को लेकर पहले से बाहे चढ़ा रहे थे। श्री शेखावत 2013 के विधानसभा चुनाव के पहले का 2008 का इलेक्शन हार चुके थे। उन्होंने पिछली पराजय की पुनरावृति ना हो इसलिए यह चुनाव बडी मुस्तैदी से लड़ा। चुनाव प्रचार में जनता के सामने यहां तक कहा, अबकि बार सफलता दिला दो हाली( नौकर) बन कर सेवा करूंगा। मोदी लहर की आंधी के इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी श्री गुर्जर के पांव 16,115 मतांतर की पराजय से उखड़ गए। उधर, जिला बनाने के आश्वासन के किरदार भाजपा उम्मीदवार श्री शेखावत की तकदीर ने साथ दिया और विधान सभा में कदम रखने में काययाब हुए। यहां पर श्री शेखावत की नागदा को जिला बनाने की अग्निपरीक्षा थी। संयोग थाकि प्रदेश में भी भाजपा की सरकार बनी और शिवराज प्रदेश के मुखिया बने। यहां गौर करने लायक बात हैकि जिला बनाने का हर एंगल से अनुकूल समय था। लेकिन पांच वर्ष गुजर गए जिस मांग को डॉ. गेहलोत अनंुशंसा कर रहे थे वह मांग इस सुहाने समय में पूरी नहीं हुई। मतलब नागदा को जिला बनाने का मामला खटाई में पडा रहा। श्री शेखावत का विधायक कार्यकाल पूरा होगया, जिला नहीं बना और वे बैरंग उल्टे पांव घर लौट आए। हालांकि श्री शेखावत ने अपने विधायक कार्यकाल में विधानसभा में इस मसले पर प्रश्नों के तीर तो चलाए, लेकिन हर प्रश्न के जवाब नकारात्मकता में गौण हो गए।
श्री शेखावत को मिली बुरी खबर-
श्री शेखावत को विधायक काल में 23 जुलाई 2014 को एक बुरी खबर स्वयं के अतारांकित प्रश्न के जवाब में अपनी ही पार्टी की सरकार में तत्तकालीन राजस्व मंत्री रामपालसिंह के माध्यम से मिली। श्री शेखावत ने विधानसभा में सवाल किया थाकि नागदा जंक्शन को जिला कब तक घोषित किया जाना प्रस्तावित है। दूसरा सवाल था जिला घोषित करने के लिए क्या -क्या कार्यवाही की गई। इसका जवाब आया राजस्व विभाग के पत्र क्रमांक डी- 853/ 1777/ 2008 सात-6 दिनांक 2 जून 2012 द्धारा नागदा को जिला बनाने ंसंबधी प्रस्ताव पूर्ण विचारोंपरांत अमान्य किया गया है। दूसरे प्रश्न का जवाब स्वत गौण हो गया। यहां पर यह बात गौर करने लायक हैकि जिस मंाग को लेकर डॉ गेहलोत की मंशा थी ,श्री शेखावत ने जिस मांगपत्र भाजपा की और से जो दिनांक 16 सितंबर 2010 को स्वयं ने हस्ताक्षर कर दिया था उस मांग का प्रस्ताव अपने ही पार्टी की सरकार में जून 2012 में खारिज हो गया। यह प्रस्ताव जिस अधिकारी ने निरस्त किया वह गैरकानूनी प्रक्रिया थी। उसकों यह अधिकार नहीं था। यहां पर श्री शेखावत भूल कर गए इस प्रस्ताव निरस्त होने के खिलाफ तूरंत आवाज उठा देना थी। ऐसा करने के बजाय उन्होंने श्री गुर्जर के नाम ढीकरा फोड़ दिया। कारण कि इस अवर सचिव स्तर के अधिकारी को प्रस्ताव निरस्त करने का अधिकार नहीं था। मजेदार बात 28 अगस्त 2016 को प्रमुख सचिव राजस्व ने नागदा को जिला बनाने की पुन प्रकिया प्रांरभ करने की बात की यह आदेश इस बात का परिचायक हैकि वर्ष 2012 में जो प्रस्ताव निरस्त हुआ वह अवैधानिक था।
जब यह प्रस्ताव निरस्त हुआ तब क्षेत्र के विधायक श्री गुर्जर थे, और प्रदेश में भाजपा सरकार थी। यह भी गौर करने लायक हैकि यही परीक्षण लगभग 7 वर्ष बाद कमलनाथ सरकार में फिर कराया गया और पारित भी हो गया। मतलब जाहिर भाजपा के शीर्ष नेता समेत एवं काग्रेस विधायक श्री गुर्जर की मांग कमलनाथ के मन भा गई ।
श्री गुर्जर की परीक्षा घड़ी-
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में सूबे के सरदार का पासा पल्ट गया। श्री गुर्जर जो नागदा को जिला बनाने की मांग को लेकर आंदोलन अख्तार कर रहे थे, वे विधानसभा का चुनाव 5117 वोटों से जीत गए। इधर, प्रदेश में लूली- लंगड़ी कमलनाथ की सरकार बन गई। इस सरकार में कैबिनेट में श्री गुर्जर के चांस इसलिए प्रबंल बने थेकि वे चौथी बार विधानसभा में दस्तक देने पहुंचे थे। समूचे उज्जैन जिले में उनके बराबरी में वरिष्ठता के मापदंड में कोई कांग्रेस विधायक नहीं था। जैसी वर्ष 2013 के बाद में दिलीपंिसह शेखावत की परीक्षा की घड़ी नागदा को जिला बनाने की थी, इसी प्रकार वर्ष 2018 की जीत दिलीपसिंेह गुर्जर के जी का जंजाल बनी। विधायक श्री गुर्जर की लाज कमलनाथ ने रख ली, और अपनी सरकार गिरने के पहले मंत्रिमंडल में इस मांग पर मुहर लगा दी। परीक्षण में यह शहर काबिल माना गया।
मतलब जिस परीक्षण को वर्ष 2012 में अमान्य शिवराज सरकार में किया वह प्रस्ताव 7 वर्ष बाद कमलनाथ सरकर में मंजूर होकर बाजी मार गया। अधिसूचना की प्रकिया शेष थी और सिंधिया की बगावत से सरकार गिर गई। लेकिन शिवराज फिर सीएम बन गए। लेकिन आगे की प्रक्रिया फिर अब ठंडे बस्ते में दम तोड़ रही है।
भाजपा के पाले में गैंद-
कमलनाथ सरकार ने 18 मार्च 2020 को प्रदेश में तीन नवीन जिले नागदा, डिडोरी और चाचौडा़ का सर्जन करने के लिए प्रस्ताव पारित किया। अधिसूचना जारी हो उसके पहले सरकार गिर गई। फिर शिवराज मुखिया बन गए। मतलब जाहिर नागदा को जिला बनाने की सहमति तो हो चुकी है। अब मात्र अधिसूचना जारी करना है। ठीक एक वर्ष के बाद मप्र में विधानसभा चुनाव है। अभी तक के संकेतांे से लगता नहीं है। यह बात संभव हैकि भाजपा उम्मीदवार अब अगले चुनाव में यह नया खेल खेलेेंगे कि अबकि बार क्षेत्र का विधायक बदल तो जिला हम बनाएंगे। लेकिन पिछली बार के भाजपा के वर्ष 2013 से 2018 के अनुकूल समय पर भी तो जनता सवाल खड़ा करेगी।
इधर, इस मसले पर आक्रामक शैली पर समय समय पर आंदोलन करने वाली कांग्रेस अब इस मसले पर कांग्रेस गहरी नींद में खर्राटे भर रही हैं। भाजपा को घेरने में विफल हो गई। ऐसा क्यों हो रेहा है ,संभव है इस सूबे के वर्तमान कांग्रेस सरदार पार्टी से दामन झटक कर पाला बदलने की गुपचूप रणनीति में मशगूल हो।
प्रस्तावित जिले की तस्वीर-
कमलनाथ सरकार के कार्यकाल में एक निर्देश पर नागदा को जिला बनाने का परीक्षण प्रस्ताव कलेक्टर उज्जैन ने वर्ष 2019 में भेजा उसमें प्रस्तावित जिले में कुल 561 गांवों को तथा 301 ग्राम पंचायतों को शामिल किया गया। इस नवीन जिले में नागदा क्षेत्र के 114 गांव, खाचरौद के 110, महिदपुर के 114, झारडा 113 एवं रतलाम जिले की आलोट तहसील के 110 गांव शामिल करने का प्रस्ताव बनाया। उन्हेल कस्बे के 28 गांवों को भी शामिल किया गया। नवीन जिले की जनसंख्या का आंकलन किया गया तो यह बात सामने आई कि प्रस्तावित नागदा जिले में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार आबादी 9 लाख 77 हजार 201 आंकी गई। कमलनाथ सरकार के मंत्रिमंडल ने 18 मार्च 2020 को नागदा को जिला बनाने का प्रस्ताव पारित कर दिया। लेकिन अधिसूचना जारी होने के पहले सरकार ओधे मंूह गिर गई।
सूलगते सवाल-
(1) डॉ़ गेहलोत ने लगभग 12 वर्ष पहले मंशा जताई , उस मांग को शिवराज सरकार में ही जून 2012 में खारिज कर दिया। बाद में भी लगातार शिवराज लगभग 12 वर्ष सीएम बनेे( मात्र 15 माह की कमलनाथ सरकार को छोड़कर ) यह मांग मूर्तरूप नहीं ले पाई।
(2) यह मांग कमलनाथ के मन को भा गई, और अपने अल्प 15 माह के कार्यकाल में स्वीकृति को अंजाम दिया। मतलब वर्ष 2012 में शिवराज सरकार के नौकरशाह ने मनमाने तरीके से प्रस्ताव को खारिज किया, जिस प्रस्ताव को अयोग्य माना वह प्रस्ताव 7 र्व्ष के बाद सरकार बदलते ही कमलनाथ सरकार ने परीक्षण में काबिल माना।
(3) कमलनाथ सरकार ने प्रस्ताव को योग्य तो माना और 18 मार्च 2020 को मंत्रिमंडल ने स्वीकृति की मुंहर भी लगाई। ंिसधिया की बगावत से सरकार का गिरना आगे की कार्यवाही में बाधा बनी। लेकिन सूलगता अब सवाल आगे की कार्यवाही पर सारे सत्ता के सूरमा क्यों खामोश है। विधायक श्री गुर्जर के तेवर ढीले पडें हैं। जबकि अब मात्र अधिसूचना जारी करना शेष है।
(4) वर्ष 2013 में भाजपा की टिकट पर विधायक बने श्री शेखावत ने नागदा को जिला बनाने का आश्वासन देकर जनता से वोट मांगे थे, प्रदेश में उनकी सरकार भी बनी और स्वयं विधायक भी। लेकिन 5 वर्ष के लंबे समय अंतराल में भी क्षे़त्र के वाशिंदों को अपना हक नहीं मिला।
(5) पूर्व विधायक श्री शेखावत का यह आरोप सामने आया कि विधायक गुर्जर ने इस मामले में गलतियां की जिसके कारण जिला नहीं बना। क्या गलतियां थी आज तक सार्वजनिक नहीं हुई। यदि त्रुटियां की थी उनको सुधारने की जिम्मेदारी भी उन लोगों की थी जो कि नागदा को जिला बनाने की राह में स्वयं हम सफर थे। जबकि वर्ष 2012 में जो गैरकानूनी तरीके से अवर सचिव स्तर के अधिकारी ने प्रस्ताव निरस्त किया इसके खिलाफ इन्होंने क्या आवाज उठाई उसके प्रमाण आज तक सामने नहीं आए।
(6) कमलनाथ सरकार गिरने के बाद एक बार फिर शिवराज नागदा आए थे। जब उनसे मीडिया ने सवाल किया था कि कमलनाथ सरकार ने नागदा को जिला बनाने की हरी झंडी दी है, तब उन्होंने अपने जवाब में इस योजना पर कोई सकारात्मकता प्रकट नहीं की।
(7) सत्ता पक्ष के लोग अब बार- बार यह दलील दे रहे हैकि हम ही जिला बनाएंगे। लेकिन मंजूरी तो कमलनाथ सरकार में मिल चुकी है, कब अधिसूचना जारी होगी। 9 माह बाद तो मप्र में आचार संहिता की तलवार लटक जाएगी। तीन माह में जिला बनने की कार्यवाही नहीं हुई तो फिर तो जनता के साथ नाइंसाफी होगी।
0 इस आलेख में जो भी तथ्य एवं आकडे़ प्रस्तुत है, वे सभी प्रमाणित है, जोकि प्रमाणिक प्रणाली से संकलित हैै।