कृषि दर्शनमंदसौरमध्यप्रदेश

1193 संतरे व 7 नींबू की वाडिया स्थापित हुई, समय पर उत्पादन हेतु सिंचाई पद्धति तकनीकि पर प्रशिक्षण 

 
मन्दसौर। मन्दसौर जिले में एचडीएफसी बैंक परिवर्तन एवं बाएफ लाईव्वलीहुड्स मध्यप्रदेश के संयुक्त तत्वाधान में जिले के सीतामऊ एवं गरोठ विकासखण्ड में क्रियान्वित की जा रही एफडीपी वाड़ी विकास परियोजना अन्तर्गत एक दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण सह प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन कृषि विज्ञान केन्द्र सह उद्यानिकी महाविद्यालय मन्दसौर में किया गया जिसमें ग्राम बर्डिया अमरा, खजूरीरूण्डा, साठखेडा एवं पून्याखेडी के 25 वाडी प्रतिभागियों द्वारा भाग लिया।
 कार्यक्रम में परियोजना के टीम लीडर आर.जी. गुप्ता द्वारा संचालित परियोजना में लक्ष्य अनुरूप 1200 प्रतिभागियों के यहां एक एकड क्षेत्र में 1193 संतरे (नागपुरी मेन्ड्रीन) तथा 7 नींबू की तकनीकी रूप से वाडियॉ स्थापित की जा चुकी है साथ ही स्थापित वाडियों में अधिक मूल्य आधारित अंतरवर्तीय फसलों लहसुन, प्याज, टमाटर एवं मिर्च सम्पूर्ण शस्य क्रियाओं के साथ सहयोग प्रदाय कर किसानों को नवीन पद्धतियों से अवगत कराते हुए अधिक आय की ओर ले जाया गया। कार्यक्रम में उपस्थित उद्यानिकी महाविद्यालय मंदसौर से डॉ. ज्योति कवंर (फल विभाग) के द्वारा वाडी परियोजना के द्वारा किये जा रहे सहयोग से क्षेत्र के किसानों को प्राप्त हो रहे लाभ एवं तकनीकी ज्ञान हेतु एचडीएफसी बैंक परिवर्तन व बाएफ लाइवलीहुड्स टीम की सराहा एवं उक्त प्रकार की अभिनव पहल के लिए प्रत्येक स्तर पर परियोजना को महाविद्यालय स्तर से सहयोग के लिए आश्वस्त किया गया। डॉ. ज्योति कवंर द्वारा संतरे की वाडियों की आयु के अनुसार लगने वाले पोषक तत्वों के प्रबंधन, पौध को दी जाने वाले पोषक तत्वों को देने का समय, स्थान के बारे में विस्तृत जानकारी दी साथ ही कार्यक्रम में उपस्थित कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रमुख डॉ. जी.एस. चुण्डावत द्वारा पौधों में लगने वाले कीटों की पहचान, प्रभाव एवं उनके रोकथाम के बारे में प्रजेटेशन के माध्यम से किसानों को अवगत कराया विशेष रूप से भौतिक नियत्रण जैसे प्रकाश प्रपंच, फेरोमेन टैप, येलो स्टिकी टैप आदि के लिए उपयोग पर विशेष रूप से जोर दिया तथा साथ ही जैविक उत्पादों जैसे निमास्त्र, अग्यिास्त्र, दशपत्ती अर्क, एनपीव्ही आदि उत्पादों के प्रयोग पर भी जोर दिया ताकि पर्यावरण प्रदूषण नियत्रण कर किसानों को कम लागत में अधिक मुनाफा हो साथ ही उपस्थित प्रतिभागियों द्वारा पूछे गये प्रश्नों जिसमे प्रशिक्षण के दौरान उपस्थिति किसानों द्वारा संतरे के फूल एवं फल अधिक गिरने कारण गर्मी ऋतु में जिन पौधें को तान पर छोड़ा जाता है उन बगीचों में प्रथम बरसात के बाद यदि वारिश कम या अन्तराल अधिक हो जाता है तो पौधों को कुए या ट्यूबवेल का पानी बहाव विधि से नही देना चाहिए अधिक आवश्यकता होने पर ड्रिªप या आंशिक रूप से छिडकाव विधि द्वारा पौधों को पानी की पूर्ति करे। क्षेत्र में नील गायों का प्रकोप अधिक होने के कारण अधिकांशतः वाडिया प्रभावित होते है जिसमे बचाव हेतु नीलबो नामक जैविक में जूट की रस्सी को भिगोकर एवं रस्सी पर सफेद कपड़े को लपेटकर खेत के चारों तरफ लगाना चाहिए। संतरे के पौधे में निचली सतह या शाखाओं के निचले भाग से चिपचिपा पदार्थ या गोद निकलने की समस्या आ रही है जो कि फायटोप्थोरा फफूंद के आक्रमण के कारण आती है जो कि मौसम में अचानक परिवर्तन जैसे अधिक ठंड का आना तापमान का बढ़ना से अधिक समय बारिश होना आदि प्रमुख कारण है इसके पौधों में वर्ष में दो बार वर्षा आरम्भ के पहले जून एवं सितम्बर माह में चूना एवं नीला थोथा (बोडो मिश्रण) का 10 प्रतिशत घोल बनाकर पौध में पुताई करे तथा 1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करे।
प्रशिक्षण कार्यक्रम के पश्चात् उद्यानिकी महाविद्यालय प्रक्षेत्र का भ्रमण तथा बीजू पौधों को कलमी पौधा बनाने के लिए कलम तैयार करना व उसका प्रस्थिापन के बारे में जानकारी ली। प्रक्षेत्र भ्रमण प्रबंधन हेतु धन्यवाद बाएफ लाइवलीहुड्स के सुरेश मेवाडा द्वारा किया गया एवं आभार मयंक यादव द्वारा किया गया।

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