आलेख/ विचारनीमचमध्यप्रदेश

पिंजरे में परिषद पिंजरे में जनता की शक्ति और पिंजरे में लोकतंत्र

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नगर पालिका परिषद नीमच ने पार्षदों को रोकने के लिए जाली रुपी पिंजरे लगा दिए हैं परिषद हाल में पिंजरे लगाना या जाली लगाना एक सामान्य घटनाक्रम नहीं है इसे किसी भी नियम, कानून और व्यवस्था का समर्थन प्राप्त ही नहीं हो सकता है।

नगर पालिका परिषद की शक्ति परिषद में होती है और परिषद की शक्ति पार्षदों में होती है ऐसे में पार्षदों को जाली लगाकर रोकना लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए कतई उचित कदम नहीं है।

अध्यक्ष के तर्क को भी समझें कि पार्षद हंगामा करते हैं और उन्हें रोकना है लेकिन अनुशासन और व्यवस्था के नाम पर पार्षदों को जाली लगाकर रोकने की बजाय पार्षदों की बातें सुनकर , उनकी समस्याओं का निराकरण कर उन्हें रोका जाना चाहिए ।

परिषद में पार्षद ज्यादातर जनता के मुद्दों पर ही चर्चा करते हैं या नगरपालिका के प्रशासन के संबंध में चर्चा होती है फिर ऐसे में उन्हें जाली लगाकर रोकना कहां तक उचित है ?

परिषद में अध्यक्ष से भी अधिक शक्तिशाली पार्षदगण होते हैं पार्षदों को ही बहुत से बहुमत से प्रस्ताव को पारित करने या निरस्त करने का अधिकार होता है ऐसे में पार्षदों की शक्ति को और उनकी आवाज को दबाना उन्हें शक्तिहीन करने के समान है ।

नगरपालिका अधिनियम के प्रावधानों के चलते अब परिषद में महिलाओं का बहुमत है और सम्मान की पात्र महिला शक्ति को रोकना , उनकी आवाज को दबाना आरक्षण के असली उद्देश्य को ही खत्म करने के समान है नेतृत्व को बढ़ने से रोकने के समान है ।

ताकतवर शेर को पिंजरे में बंद करने से वह शक्ति हीन हो जाता है उसी प्रकार पार्षदों को भी पिंजरे में बंद करने से और उनकी आवाज को दबाने से वे शक्तिहीन हो जाएगे।

पार्षदों को प्रश्न पूछने, उत्तर जानने का अधिकार है लेकिन जनता को न प्रश्न पूछने का अवसर मिल रहा है ना उत्तर जानने का अवसर मिल रहा है।

पिंजरा लगाना मात्र पार्षदों का ही अपमान नहीं है बल्कि यह जनता का अपमान है जनता के विश्वास पर गहरी चोट है और लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने का एक बड़ा कदम है।

महेश पाटीदार, एडवोकेट नीमच 

 

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