आबादी के हिसाब से मध्य प्रदेश में होने चाहिए 1700 थाने, पर हैं केवल 968

भोपाल। मुख्यमंत्री के निर्देश पर प्रदेश में 600 से अधिक थानों का परिसीमन तो कर दिया गया, पर थानों की संख्या आवश्यकता के अनुसार नहीं बढ़ाई जा रही है। सरकार के निर्धारित मापदंड के अनुसार 50 हजार की आबादी पर एक जिला पुलिस थाना होना चाहिए।
इस तरह प्रदेश की अनुमानित आठ करोड़ 64 लाख आबादी के मान से 1700 से अधिक थानों की जरूरत है, पर 968 ही हैं। इसी तरह से अपराध के हिसाब से प्रतिवर्ष 300 अपराधों पर एक थाना होना चाहिए। इस मापदंड के अनुसार भी प्रदेश में कम से कम एक हजार जिला पुलिस थाने होने चाहिए। बल की कमी के चलते थानों की संख्या नहीं बढ़ाई जा रही है, जिससे अपराधों पर नियंत्रण और फरियादियों को समय पर न्याय नहीं मिल पाता।
वर्ष 2000 में प्रदेश पुलिस का बजट 1002 करोड़ रुपये था। इसके बाद से लगातार बढ़ते हुए अब यह आठ हजार करोड़ पहुंच गया है। यानी इसमें आठ गुना की बढ़ोतरी हो गई है। जनसंख्या भी वर्ष 2000 में छह करोड़ से बढ़कर 8 करोड़ 64 लाख हो गई है। इस तरह 44 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) अपराध एक लाख 81 हजार से बढ़कर अब तीन लाख से ऊपर पहुंच गए हैं। इस तरह अपराध भ्साी 64 प्रतिशत बढ़ गए पर जिला पुलिस के थानों की संख्या 717 से बढ़कर 968 (35 प्रतिशत वृद्धि) ही हो पाई। रेल पुलिस, महिला, अजाक सहित सभी थानें मिलाकर अभी कुल 1159 थाने प्रदेश में हैं।इसके अतिरिक्त जो थाने खुले हैं वहां भी बल की कमी है। शहरी क्षेत्र के थाने में स्वीकृत बल 70, ग्रामीण क्षेत्र के थाने में 35 और अर्ध शहरी क्षेत्र के थानों में 45 है, पर हर स्तर पर बल की कमी है। एक थाना खोलने में सालाना पांच से आठ करोड़ रुपये तक का खर्च है। बजट की तंगी के चलते सरकार आवश्यकता के अनुसार नए थाने नहीं बना रही है।