नई दिल्ली। जाति के आधार पर भेदभाव और छूआछूत समाप्त हो चुके हैं लेकिन आश्चर्य की बात है जेल मैनुअल में अभी भी यह शामिल है। सुप्रीम कोर्ट ने जेल में जाति के आधार पर काम का बंटवारा करने और जाति आधारित भेदभाव बढ़ाने वाले नियमों पर चिंता जताते हुए गुरुवार को राज्यों के जेल मैनुअलों के भेदभाव वाले प्रविधान रद कर दिए। कोर्ट ने भेदभाव वाले नियमों को संविधान के अनुच्छेद 14, 15,17,21 और 23 का उल्लंघन बताया है।
तीन महीने का मिला समय
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जेबी पार्डीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपने जेल मैनुअल के प्रविधानों और नियमों को कोर्ट के आदेश के मुताबिक, तीन महीने में पुनरीक्षित करने का आदेश दिया है।
केंद्र सरकार को आदेश
इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए मॉडल प्रिजन मैनुअल 2016 और मॉडल प्रिजन एंड करेक्शनल सर्विस एक्ट 2023 में तीन महीने के भीतर जरूरी सुधार करे जैसा कि फैसले में इंगित किया गया है।
जेल मैनुअल में जाति के आधार पर काम
आदेश में कहा गया है कि राज्यों के जेल मैनुअल में जहां भी आदतन अपराधी (हैबिचुअल अफेन्डर) का संदर्भ होगा वह संदर्भ राज्य के कानूनों में आदतन अपराधी की दी गई परिभाषा के अनुसार होगा और अगर राज्य के जेल मैनुअल में जाति के आधार पर आदतन अपराधी का संदर्भ है तो वह असंवैधानिक होगा।
मनमानी गिरफ्तारी का शिकार
कोर्ट ने आदेश दिया है कि जेल के भीतर रजिस्टर में कहीं भी अगर विचाराधीन कैदियों या सजा काट रहे कैदियों के रजिस्टर में जाति का कालम है तो उसे मिटा दिया जाए यानी समाप्त कर दिया जाए। यह भी कहा है कि पुलिस सुनिश्चित करेगी कि डीनोटीफाइड जनजातियां मनमानी गिरफ्तारी का शिकार न हों। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को तीन महीने बाद उचित पीठ के समक्ष सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया है। पहली सुनवाई पर सभी राज्य इस फैसले के अनुपालन की रिपोर्ट दाखिल करेंगे।