आलेख/ विचारमंदसौरमध्यप्रदेश

भगवान परशुरामजी ने अहंकारी और धृष्ट आतताइयों का पृथ्वी से 21 बार संहार किया

10 मई भगवान परशुराम जयंती विशेष-
भगवान परशुरामजी ने अहंकारी और धृष्ट आतताइयों का पृथ्वी से 21 बार संहार किया
पं. रविन्द्र कुमार पाण्डेय
मो.नं. 9669466999
dartmds01@gmail.com

भगवान परशुराम जी ने ऐसे आतताइयों का विनाश किया जिनका किसी जाति से कोई संबंध नहीं है जहां भी आतंकवादी अत्याचारी थे उनका समुल नाश करने वाले भगवान परशुरामजी का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण इत्यादि अनेक धर्म ग्रन्थों में किया गया है। परशुरामजी अहंकारी और धृष्ट वंशी आतताइयों का पृथ्वी से 21 बार संहार करने वाले ऋषि थे । आपने पृथ्वी पर वैदिक संस्कृति की स्थापना की।
भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को विश्ववन्द्य महाबाहु परशुराम का जन्म हुआ था। वे भगवान विष्णु के छठे अवतार है।
भगवान विष्णु के 6वें अवतार भगवान परशुराम जी
परशुराम का शाब्दिक अर्थ है -‘परशु’ का तात्पर्य है पराक्रम. ‘राम’ पर्याय है सत्य सनातन का। इस प्रकार परशुराम का अर्थ हुआ पराक्रम के कारक और सत्य के धारक। भगवान परशुराम जी का जन्म सतयुग और त्रेता के संधिकाल में 5142 वि.पू. वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन-रात्रि के प्रथम प्रहर प्रदोष काल में हुआ था।
भगवान परशुराम को शास्त्रों की शिक्षा दादा ऋचीक, पिता जमदग्नि और शस्त्र चलाने की शिक्षा राजर्षि विश्वमित्र और भगवान शंकर से प्राप्त हुई थी. परशुराम योग, वेद और नीति के पारंगत माने जाते हैं. ब्रह्मास्त्र जैसे बड़े-बड़े शास्त्रों का उनको ज्ञान था. उन्होंने महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की
चिरंजीवी हैं भगवान परशुराम पुराणों के अनुसार ऐसे सात देवता हैं जिनको चिरंजीवी का आशिर्वाद प्राप्त है. यह सब किसी न किसी वचन, नियम या शाप से बंधे हुए हैं और यह सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न है।
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः॥
सप्तैतान् स्मरेन्नित्यम् मार्कण्डेयम् तथाष्टमम्।
जीवेद्‌ वर्षशतं सोऽपि सर्वव्याधिविवर्जितः॥
अश्वथामा, दैत्यराज बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि. परशुराम को भगवान श्री कृष्ण ने सप्त कल्पांत तक जीवित रहने का वरदान दिया है।
सनातन धर्म ग्रंथो के अनुसार  प्रतिदिन सप्तचिरंजीवियों के  श्लोक का पठन करने पर निरोगी दीर्घायु की प्राप्ति होती है

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