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भागवत कथा सत्य का ज्ञान कराती है- पं. जगदीश शास्त्री


आत्म ज्ञानी लोग दुख सुख से परे होते हैं

मन्दसौर। सत्य का जीवन में बहुत महत्व है। सत्य बराबर तप नहीं और झूठ बराबर पाप नहीं है। सत्य-सत्य ही रहता है उसका केवल एक ही रूप है जबकि झूठ के कई रूप है झूठ जल्दी फैलता है । भागवत सत्य का ज्ञान कराती है और  जीवन कैसे जीना चाहिए बोध कराती है।
उक्त उद्गार  भागवताचार्य पं. जगदीश शास्त्री ने संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव वृंदावन में  कही। शास्त्री जी ने कहा कि ब्रह्म वाक्य जनार्दन। संत और सच्चे ब्राह्मण के वाक्य आशीर्वाद स्वरूप है। सदैव संतों, गुरूओ और ब्राह्मण का सम्मान करना चाहिए।
आपने कहा कि गर्भ में रहने वाले जीव पर भगवान की माया प्रभाव नहीं डालती परन्तु गर्भ से निकलने के बाद जीव पर माया प्रभाव छोड़ती नहीं है। भजन करने से सच्चे मार्ग पर चलने वालों पर माया प्रभाव नहीं डालती। आत्म ज्ञानी लोग आत्मा और परमात्मा को जानते हैं दुख सुख से परे होते हैं। आपने कहा कि संसार के लोगों की कथा ही अलग है, संसार दुख का सागर है जिसको देखो उसकी यही कथा कोई तन दुखी, कोई मन दुखी और और कोई धन दुखी हैं।
शास्त्रीजी  ने कहा कि 17- 17 पुराण व्यासजी ने लिखे दिये फिर भी  सांसारिक जीवन में मोक्ष का मार्ग मानव नहीं कर पा रहा है। पंचम वेद लिखने वाले व्यासजी को भी गुरु का साथ करना पड़ा, नारद जी के चरण पकड़ लिए, नारद जी ने  चार श्लोक दे दिये ज्ञान दे दिया। सच्चा गुरु दिशा बताते हैं जिससे भक्त की दशा बदल जाती हैं। मां के गर्भ में ही भगवान के दर्शन करने वाले राजा परीक्षित साधारण व्यक्ति कैसे हो सकता है। अंधस्य पुत्रस्य अंध बोलने पर महाभारत हो गई बोलने में सावधानी रखना चाहिए नपा-तुला शब्द बोलना और सोच समझकर बोलने पर महाभारत नहीं होती है।
शास्त्री ने कहा कि कौरवों की सभा में पांच पांच पतियों, द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह सहित कई योद्धा के उपस्थित होने के बाद भी द्रोपदी की कोई मदद नहीं कर पाये थे क्योंकि मर्यादा में बंधे हुए थे। जिसका खाओ अन्न वैसा हो मन सभी देखते रहे कुछ नहीं कर पाये अन्त में हार मानकर ईश्वर का चिंतन किया। भगवान कृष्ण को याद किया। सबकुछ  भगवान को मान लिया और भगवान ने सहारा दिया लाज बचाई । ईश्वर को सच्चे दिल से याद करने से चिंतन करने  से ईश्वर लाज बचाते हैं कष्ट दूर करते हैं। परमात्मा को पल पल याद करना और सच्चाई पर चलना ही ध्येय रखना हमारा दायित्व है।
कथा के दौरान मंदसौर से पधारे भेरूलाल कुमावत, मांगीलाल धाकड़, रणछोड़लाल कुमावत, योगेन्द्र जोशी रामचंद्र कुमावत, जगदीश कुमावत, मांगीलाल चौधरी, शांतिलाल कुमावत, शंकरलाल माली,मुकेश शर्मा, गोपाल शर्मा, शंकरलाल कुमावत,श्याम शर्मा सहित अनेक धर्म प्रेमी उपस्थित थे।

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