आलेख/ विचारमंदसौरमध्यप्रदेश
सेवानिवृत्ति के बाद पुनः नियुक्ति अनुचित है -रमेशचन्द्र चन्द्रे
यह बेरोजगारों के मौलिक अधिकारों का हनन है
-रमेशचन्द्र चन्द्रे
मन्दसौर।
मन्दसौर।
मध्यप्रदेश सहित अनेक राज्यों में यहां तक की केंद्र सरकार के द्वारा अनेक अधिकारियों और कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद पुनः नियुक्ति दी जाती है, यद्यपि उसकी कई शर्तें हैं, किंतु इस प्रकार की नियुक्ति करना पूर्णतः अनुचित होकर नवयुवा बेरोजगारों के साथ एक प्रकार का अन्याय है ।
उक्त विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए शिक्षाविद रमेशचन्द्र चन्द्रे ने कहा कि सरकार ने गजट नोटिफिकेशन मध्य प्रदेश राजपत्र (असाधारण) क्रमांक 526/26-9-17 के जरिए सेवानिवृत्ति के बाद आधारित नियुक्तियों को ‘न्यूनतम’ रखने का भी प्रस्ताव किया है। वित्त मंत्रालय के तहत व्यय विभाग की ओर से 13 अगस्त को जारी कार्यालय ज्ञापन में कहा गया है कि कई मंत्रालय/विभाग केंद्र सरकार के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को सलाहकार रखने सहित अनुबंध पर पुनः नियुक्त करते हैं लेकिन अनुबंध पर काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन भुगतान संबंधी नियमों के दिशा निर्देश में कोई एकरूपता नहीं है। व्यय विभाग ने सेवानिवृत्त केंद्रीय कर्मचारियों की पुनः नियुक्ति पर उनको दिए जाने वाले वेतन के बारे में नियमों का मसौदा बनाया है। केंद्र सरकार ने कहा कि अनुबंध या ठेके पर काम कर रहे सेवानिवृत्त कर्मचारियों के वेतन के नियमनों में एकरूपता होनी चाहिए। दिशानिर्देशों के मसौदे में कहा गया है कि सेवाकाल के कामकाज के आधार पर उनकी पुनः नियुक्ति की जावे किंतु इस प्रकार की नियुक्ति न्यूनतम होनी चाहिए। मसौदे में कहा गया है कि इस तरह की नियुक्तियां आधिकारिक कामकाज की जरूरत तथा जनहित को देखते हुए की जानी चाहिए। वेतन के भुगतान पर इसमें कहा गया है कि इन कर्मचारियों को निश्चित मासिक वेतन दिया जाना चाहिए। यह वेतन उस कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के समय मिल रहे वेतन में से मूल पेंशन को काटकर निकाला जाना चाहिए। इसे उनका ‘वेतन’ कहा जाना चाहिए।
श्री चन्द्रे ने उक्त विषय के संदर्भ में कहा कि, सेवानिवृत्ति के बाद सरकार पुन नियुक्ति को लेकर के जितनी चिंतित दिखाई दे रही है, उसे उससे ज्यादा चिंता बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए करना चाहिए। सेवानिवृत्ति के बाद यदि कोई पद खाली होता है जिसके कारण सरकार और जनता के कामकाज को लेकर अडचन पैदा हो सकती है तो उन रिक्त पदों पर भले ही अनुबंध के आधार पर ही सही बेरोजगार क्वालिफाइड नवयुवकों को स्थान मिलना चाहिए।
श्री चन्द्रे ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि न्यायपालिका से रिटायर्ड न्यायाधीशों की सेवाओं को कार्यपालिका में लेने का कोई औचित्य नहीं है किंतु सारे नियम और मर्यादाओं को ताक में रखकर न्यायाधीशों की पुनः नियुक्ति राज्य शासन और केंद्र शासन द्वारा विभिन्न स्थानों पर की जाती है और यहां तक की सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट के जजों को राजनीतिक नियुक्तियां भी प्रदान की जाती है जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों के पूर्णता विरुद्ध है। मध्यप्रदेश सरकार सहित अन्य राज्यों की सरकारें और केंद्र सरकार को इस दिशा में कड़े कदम उठाना चाहिए तथा सेवानिवृत्ति के बाद पुनः नियुक्ति के प्रावधान को पूर्णता समाप्त कर देना चाहिए यदि ऐसा नहीं होता है तो जो बेरोजगार प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते-करते बूढ़े हो जाते हैं उन्हें कभी भी नियुक्ति नहीं मिलेगी और जो बूढ़े हो चुके हैं और अधिक बुढे होने तक सेवाएं देते रहेंगे। यह एक प्रकार से सामाजिक न्याय, मानव अधिकार और न्याय सिद्धांत तथा भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों के विरुद्ध है।
श्री चन्द्रे यह भी कहा कि, यदि यह व्यवस्था लंबे समय तक चलती है तो हम न्यायालय में इस व्यवस्था के खिलाफ अपनी आपत्ति दर्ज करेंगे।
उक्त विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए शिक्षाविद रमेशचन्द्र चन्द्रे ने कहा कि सरकार ने गजट नोटिफिकेशन मध्य प्रदेश राजपत्र (असाधारण) क्रमांक 526/26-9-17 के जरिए सेवानिवृत्ति के बाद आधारित नियुक्तियों को ‘न्यूनतम’ रखने का भी प्रस्ताव किया है। वित्त मंत्रालय के तहत व्यय विभाग की ओर से 13 अगस्त को जारी कार्यालय ज्ञापन में कहा गया है कि कई मंत्रालय/विभाग केंद्र सरकार के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को सलाहकार रखने सहित अनुबंध पर पुनः नियुक्त करते हैं लेकिन अनुबंध पर काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन भुगतान संबंधी नियमों के दिशा निर्देश में कोई एकरूपता नहीं है। व्यय विभाग ने सेवानिवृत्त केंद्रीय कर्मचारियों की पुनः नियुक्ति पर उनको दिए जाने वाले वेतन के बारे में नियमों का मसौदा बनाया है। केंद्र सरकार ने कहा कि अनुबंध या ठेके पर काम कर रहे सेवानिवृत्त कर्मचारियों के वेतन के नियमनों में एकरूपता होनी चाहिए। दिशानिर्देशों के मसौदे में कहा गया है कि सेवाकाल के कामकाज के आधार पर उनकी पुनः नियुक्ति की जावे किंतु इस प्रकार की नियुक्ति न्यूनतम होनी चाहिए। मसौदे में कहा गया है कि इस तरह की नियुक्तियां आधिकारिक कामकाज की जरूरत तथा जनहित को देखते हुए की जानी चाहिए। वेतन के भुगतान पर इसमें कहा गया है कि इन कर्मचारियों को निश्चित मासिक वेतन दिया जाना चाहिए। यह वेतन उस कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के समय मिल रहे वेतन में से मूल पेंशन को काटकर निकाला जाना चाहिए। इसे उनका ‘वेतन’ कहा जाना चाहिए।
श्री चन्द्रे ने उक्त विषय के संदर्भ में कहा कि, सेवानिवृत्ति के बाद सरकार पुन नियुक्ति को लेकर के जितनी चिंतित दिखाई दे रही है, उसे उससे ज्यादा चिंता बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए करना चाहिए। सेवानिवृत्ति के बाद यदि कोई पद खाली होता है जिसके कारण सरकार और जनता के कामकाज को लेकर अडचन पैदा हो सकती है तो उन रिक्त पदों पर भले ही अनुबंध के आधार पर ही सही बेरोजगार क्वालिफाइड नवयुवकों को स्थान मिलना चाहिए।
श्री चन्द्रे ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि न्यायपालिका से रिटायर्ड न्यायाधीशों की सेवाओं को कार्यपालिका में लेने का कोई औचित्य नहीं है किंतु सारे नियम और मर्यादाओं को ताक में रखकर न्यायाधीशों की पुनः नियुक्ति राज्य शासन और केंद्र शासन द्वारा विभिन्न स्थानों पर की जाती है और यहां तक की सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट के जजों को राजनीतिक नियुक्तियां भी प्रदान की जाती है जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों के पूर्णता विरुद्ध है। मध्यप्रदेश सरकार सहित अन्य राज्यों की सरकारें और केंद्र सरकार को इस दिशा में कड़े कदम उठाना चाहिए तथा सेवानिवृत्ति के बाद पुनः नियुक्ति के प्रावधान को पूर्णता समाप्त कर देना चाहिए यदि ऐसा नहीं होता है तो जो बेरोजगार प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते-करते बूढ़े हो जाते हैं उन्हें कभी भी नियुक्ति नहीं मिलेगी और जो बूढ़े हो चुके हैं और अधिक बुढे होने तक सेवाएं देते रहेंगे। यह एक प्रकार से सामाजिक न्याय, मानव अधिकार और न्याय सिद्धांत तथा भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों के विरुद्ध है।
श्री चन्द्रे यह भी कहा कि, यदि यह व्यवस्था लंबे समय तक चलती है तो हम न्यायालय में इस व्यवस्था के खिलाफ अपनी आपत्ति दर्ज करेंगे।