भारत में शास्त्र संत और राष्ट्रसंत दोनों आवश्यक, वृंदावन में संत सम्मेलन में मंदसौर से अनेक भक्तों ने की सहभागिता
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मन्दसौर। 25 फरवरी को वृंदावन (उत्तर प्रदेश) में ब्रह्मलीन विरक्त शिरोमणि परमहंस स्वामी वामदेव जी महाराज का 26 वाँ श्रद्धांजलि संत समागम का आयोजन किया गया। जिसमें विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय संरक्षक श्री दिनेश, श्री ओमप्रकाश सिंघल, सांसद एवं संत श्री साक्षी महाराज, संत बालकानंद जी, संत धर्मदेवजी, महामंडलेश्वर श्री विशोकानंद, छावनी वाले महाराज महंत श्री नृत्य गोपालदास जी, साध्वी ऋतंभरा जी, केंद्रीय राज्य मंत्री साध्वी निरंजना ज्योतिजी, युगपुरुष स्वामी परमानंदजी के अतिरिक्त वामदेव आश्रम के प्रमुख स्वामी अनंतदेवजी सहित अनेक संतों ने संत सम्मेलन में भागीदारी की तथा अपने उद्गार व्यक्त किए।
इस अवसर पर महात्माओं के द्वारा अपने अपने प्रवचन में कहा कि आत्म चिंतन के साथ-साथ राष्ट्र चिंतन भी बहुत आवश्यक है भारत में शास्त्र संत के साथ-साथ राष्ट्र संतों की आवश्यकता बहुत अधिक है। संतो के द्वारा प्रवचन में समग्र रूप से भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के संकल्प पर जोर दिया गया इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भारत को हिंदू राष्ट्र है ही किंतु हिंदू राष्ट्र का यह कदापि अर्थ नहीं है कि उसमें किसी का अहित हो उसमें सभी का कल्याण निहित है! भारत की परंपराओं के अनुसार ‘सर्वे भवंतु सुखिन‘ लक्ष्य के आधार पर ही हिंदुत्व टिका हुआ है अतः हिंदू राष्ट्र के कारण भारत का ही नहीं संपूर्ण विश्व का कल्याण होगा क्योंकि जब हम विश्व का कल्याण बोलते हैं तो इसका अर्थ ही है कि हम वैश्विक कल्याण की भावना रखते हैं।
संत सम्मेलन में मंदसौर से श्री रमेशचन्द्र चन्द्रे, श्री रवि शर्मा, श्री श्याम चौधरी, श्री राजेश तिवारी, श्री अनिल कियावत, श्री नवीन सोमानी, श्री संजय मित्तल (बबलू) एवं श्री राधेश्याम राठौर सहित अनेक भक्तों ने भागीदारी की।